Monday 26 September 2016

वाह ताज़

ताज होता सर पर तो मैं ताजमहल बनवा देता।
लाइन में खड़ा कर मजदूरों के हाथ मैं कटवा देता।
झिझकता मैं पल भर को न, इस कृत्य को करने से।
खून और बर्बरता की इस कहानी को मैं प्यार की निशानी बना देता
नज्ल लिख दूँ या फिर अफ़साने पढ़ लूँ।
खून की इस मुहब्बत में कुछ सफ़ेद चमक दूँ।
यूँ तो कहते तो बहुत होंगे कि हर चमकता पत्थर सोना नहीं होता।
पर ये सफ़ेद पत्थर भी कुछ कम नही हाँ जरूर ये सोना नहीं पर उससे कुछ कम भी नहीं।
लाल रंग चढ़कर भी देखो कितना सफ़ेद है,
दफ़न हैं कब्रें इसमें पर महकता बहुत तेज है।
वैसे तो यह बेइंतहां मुहब्बत की निशानी है
औरों की जबाँ पर , दिल के कोनों में बसे प्यार की कहानी है।
चाहे लग गए हों कितने साल कितने महीने बनने में इसको।
बह गयी हो दौलत , कट गए हों कितने हाँथ इसमें,
दोबारा इसजैसा न बनने देने को।
याद में बनवाया मुमताज की यह ताज शाहजहाँ ने।
नजरअंदाज नजरबन्द कर दिया उसके खुद के बेटे औरंगजेब ने इस ताज में ही।

Sunday 25 September 2016

रिश्ते वादे

रिश्ता बदल दिया है मैंने ,
निभाना नहीं है शायद मुझको।
रास्ता नहीं बदलूंगा अब,
कुछ और निभाने के लिए।
रस्मे बदल गईं
थोड़ी कड़वाहट आने पर
पर मैं नहीं बदला ,
यूँ तो टस से मस भी न हुआ,
मुझसे जुड़ा सब कुछ भी बदल जाने पर।

इतनी बेरुख़ी भी कम न थी मेरी
मुझसे मेरी पहचान तक छुपाने में।
जो रेत उडी थी रेगिस्तान में,
काफी थी मुझको मैं याद दिलाने में।

तकल्लुफ भी किया मैंने
यूँ वादे भी किये मैंने
पर कौन था मुझमें जो बतादे कि
ये सब किया
किससे मैंने!
ढूंढने निकला था जो
मैं मुझमें,
जाने कहाँ पहुँच गया मैं!
राह ढूंढता ही रह गया
ज़िन्दगी के इस मैखाने में।
खो गया हर वज़ूद मैं,
जाने और अनजाने में।
मिला भी तो कहाँ
फिर से उस फ़साने में।
बदल गया न जाने कैसे
मैं मुझको समझाने में।

Tuesday 13 September 2016

आसमां के नीचे गिरे पत्ते हरे हैं या सूखे क्या मालूम!

खुले आसमां के नीचे गीले पत्तों की तरह।
कोई गिला शिकवा हो मुझसे, मुस्कुराकर बोल दीजियेगा।

जिंदगी का सफर कैसा ये सफर

न हम हिन्दू हैं न हम मुसलमान हैं और न ही हम इंसान हैं हम तो सिर्फ जिंदगियां हैं जिन्हें कुछ पल के लिए आना होता है और कुछ पल में चले जाना ।ये तो हम है  जो कितनी कोशिश करे इसको रोके रखते हैं सजते संवरते इच्छाएं पूरी करते लेकिन हम एक शरीर मात्र तो हैं आत्मा तो हर शरीर बदल ही लेती है हम तो उसके पुराने -नए घर हैं और नए पुराने कपडे भी।हाँ तो हम सिर्फ शरीर हैं तो फिर कैसा धर्म , शरीर का तो कोई धर्म नहीं होता न ही कोई जाती होती है इस शरीर का सिर्फ एक धर्म होता है दुनिया में आना जिंदगी जीना और चलते बनना । पर पता नहीं हम लोगों ने इसे इतना क्यों बांधकर रखा हुआ हुआ है तरह तरह की रस्मों , कानूनों , बंधनो, रिश्तों , सबसे ज्यादा स्वार्थो में जकड़ा हुआ है । उड़ने दो पंछी को ! अगर मैं ऐसा कुछ बोलता हूं तो एक डर भाव पैदा होता है सबके मन में , अगर हर कोई कानून मुक्त,धर्म मुक्त,सीमाओं से मुक्त होगया तो हर किसी की मनमानियां बढ़ जाएंगी और इंसानी जिम्मेदारियां  ख़त्म हो जाएंगी और जब सबको उड़ने की आजादी हो जायेगी जब किसी का किसी पर हक़ नहीं रहेगा तो असंतुलन बढ़ जायेगा जिंदिगियों में फिर न कुछ काबू हो सकेगा अगर करना भी चाहेंगे।पर असलियत तो यही है हम पैदा होते हैं उन बरसाती पंखियों की तरह जो हर रौशनी के सामने जाती हैं उड़ती हैं फड़फड़ाती हैं गिर जाती हैं फिर चलती हैं फिर उड़ती हैं बहोत सी इस चक्कर में मकड़ी, चींटी,छिपकली जैसे जानवरों की दावत भी बन जाती हैं पर तसल्ली से अपनी एक ज़िन्दगी जीती हैं और सुबह तक सब एक सुर में ज़िन्दगी छोड़ जाती हैं। मैं मानता हूँ ज़िन्दगी मजाक नहीं होती और न ही आसान है जिंदगी बस एक सफर है जिंदगी तो इसे सिर्फ खुद के लिए मत जिए न सिर्फ धर्म के लिए जियो । जियो इसे आप जियो और सबके लिए जियो। न कोई दुश्मन हो न दोस्त सब हों जहाँ समान जिंदगी है उसका नाम । खुश रहो खुश करो और खुश जीना सीखो और सारे आडम्बर , कुरीतियों का बहिष्कार करो चाहे कोई भी धर्म उसको कैसी भी मान्यता क्यों न दिए हुए हो बस ये याद रखो आये हो तो कुछ जियो और कुछ करके जाओ जो खुद के हित से हटकर सबके हित में हो। जियो और जीने दो से सिर्फ काम नहीं चलेगा अब जियो के साथ अच्छी एक बेहतर जिंदगी भी देनी पड़ेगी।जिंदगी का दस्तूर है ये आओगे तो जाओगे भी न किसी में पैदा करने की ताकत है न मारने की और जो कोई ये सोचता है कि उसमें है वो अनभिज्ञ और बेवक़ूफ़ है। दो के मिलन से कोई आता नहीं वो बीज बोये जाते हैं जिसका छोर तो वो दोनों भी नहीं जानते वो तो उसे फलने फूलने का सहारा देते हैं प्यार और भरोसे की नींव रखते हैं उसपर और एक नयी दुनिया को एक मोड़ एक नया आधार देते हैं।क्या वो कर्ज होता है इस धरती का इस मिटटी का इस पानी का उस आग बबूलों का जो निराशा और हार का प्रतिशोध थे क्या उस प्यार का जो इन सब पर भारी था और है।और मरता भी कोई किसी की मौत नहीं हर कोई अपनी ही मौत मरता है कारण कुछ भी हो वजह कुछ भी।जाता कहाँ हैं होता क्या है कुछ पता नही बस हो जाता है।जैसे आता है जीता है जिलाता है और चला जाता है और रह जाता है तो बस दस्तूर ही यही रह जाता है बन जाता है।

Saturday 13 August 2016

देश हमें देता है सबकुछ

देश हमें देता है सबकुछ , हम भी तो कुछ देना सीखें।
राष्ट्र हित रक्षा में हम , जीना और मरना सीखें।।
डिगें नही व्यवधानों से हम , अडिग सत्य पर रहना सीखें।
देश हमें देता है सबकुछ, हम भी तो कुछ देना सीखें।।

मन समर्पित , तन समर्पित और यह जीवन समर्पित।
चाहता हूँ देश की धरती , तुझे कुछ और भी दूँ।।

माँ तुम्हारा ऋण बहुत है ,मैं अकिंचन।
फिर भी कर रहा हूँ, बस इतना निवेदन।।
थाल पर लाऊँ सजाकर,भाल जब भी।
कर दया स्वीकार लेना , यह समर्पण।।

गान अर्पित, प्राण अर्पित और रक्त का कण-कण समर्पित।
चाहता हूँ देश की धरती तुझे कुछ और भी दूँ।।

भाल पर मल दो चरण की धूल थोड़ी।
शीश पर आशीष की छाया घनेरी।।
स्वप्न अर्पित, प्रश्न अर्पित, आयु का क्षण क्षण समर्पित।
चाहता हूँ देश की धरती तुझे कुछ और भी दूँ।।

अपने नही अभाव मिटा पाया हूँ जीवन भर।
पर औरों के अभाव मिटा सकता हूँ।।
तूफानों, भूचालों की भयप्रद छाया में।
मैं ही एक अकेला हूँ जो गा सकता हूँ।।
आज जीवन का हर एक पल समर्पित।
चाहता हूँ देश की धरती तुझे कुछ और भी दूँ।।

मुझको अपने पर अदम्य विश्वास रहा है।
मैं खंडहर को महल बना सकता हूँ।।
ऐसे ही न जाने मेरे कितने साथी भूखे रह।
लगे हुए हैं औरों के हित अन्न उगाने।।
अपने घर के अंधकार की मुझे न चिंता।
औरों के घर के हैं मुझको दीप जलाने।।
कर्म समर्पित धर्म समर्पित और जिंदगी का सारा मर्म समर्पित।
चाहता हूँ देश की धरती तुझे कुछ और भी दूँ।।

है शौक यही , अरमान यही।
हम कुछ करके दिखलायेंगे।।
मरने वाली दुनिया में हम ।
अमरों में नाम लिखायेंगे।।
जो लोग गरीब, भिखारी हैं।
जिनपर न किसी की छाया है।।
हम उनको गले लगाएंगे।
हम उनको सुखी बनाएंगे।।

हे दरिद्र नारायण तुझको,
प्राणों का आह्वान अर्पित।
चाहता हूँ देश की धरती तुझे
कुछ और भी दूँ।।
                                                                                      १५ अगस्त १९४७ आजाद भारत-भारतीयों से प्रेरित 
       

टुटा हुआ मकबरा

रास्तों को खोल दूँ सपने बिखेर दूँ अपनों को छोड़ मैं जाऊँ फिर कहाँ।
जाना था जहाँ मुझे , जाने न कहाँ मुझे , अब सोचूं बस मैं यही, जाऊँ क्यों वहाँ।
रंगों को अब घोल कर जिंदगी का रस निचोड़ कर ,सारे अपनों को मैं छोड़ कर पहुंचा भी तो पहुँचा मैं कहाँ।
यारों की वो यारियां, फूलों की महकती क्यारियां,नन्हे मुंहों की किलकारियां ,ये सब छोड़ अगर मैं पहुंचा भी तो पहुँचूँगा मैं कहाँ।

मैंने खुदको बदलना सीखा है।

गुजरे हुए लम्हों को पकड़ना सीखा है 
मैंने रास्तों को मोड़कर बदलना सीखा है 
ऊंचाइयों पर पहुंचकर भी संभालना सीखा है 
मैंने नीचे गहराईयों में जाकर उतरना सीखा है। 
खतरों को भांपकर सुधरना सीखा है 
मैंने हर खासोआम को जानकर, समझकर 
दिलखोलकर प्यार करना और जीना सीखा है।

Sunday 24 April 2016

शाश्वत

मैं हूँ मैं करता हूँ मैं कर सकता हूँ होना या न होना मुझपर निर्भर है ये मुझसे है अगर मैं कुछ करूँगा ही नही तो कुछ होगा ही नहीं या यूँ कहूँ होना या न होना मेरे करने से है और मुझसे भी है।तो जब मैं जन्म के पहले और मृत्युपर्यंत होता या नहीं होता हूँ तब मैं करता की भूमिका में नहीं होता होना इसलिए ऐसे समय होना या न होना कोई माईने ही नहीं है कुछ मतलब ही नहीं बनता इसका।इसलिए किसी चीज का होना या न होना और उसका अस्तित्व जन्म के पूर्व और मृत्युपर्यंत होता ही नही क्योंकि ये सोच ही बदल जाती है वहां हमारी सोच लागू नहीं होती हमारी समझ काम नहीं आती है सबकुछ शांत सा होता है समझ दिल धड़कन तो होती ही नहीं। एहसास भी नही होता शायद ,बस रह जाता है तो सिर्फ वजूद ,आत्मा और परमात्मा का वजूद और सब एक सीध में हो जाता है कोई complication नही कोई झंझट नहीं ,दुःख पीड़ा नहीं बस मैं होता है और मैं हो जाता है सबकुछ । ये भी की सबकुछ की भी परिभाषा बदल जाती है माईने बदल जाते हैं सबकुछ!अब सबकुछ नहीं रह जाता वो भी शरीर से पहले और शरीर के बाद मिटटी हो जाता है सांस हो जाता है हवा हो जाता है पानी हो जाता है जलकर आसमां होजाता है सिर्फ उसकी धूल रह जाती है यहाँ।जो यादें और पलों का घेरा बना लेती हैं हमारी जिंदगियों में।

Monday 28 March 2016

बदलाव

जब हम नौसिखिये होते हैं या किसी काम के लिए नए होते हैं और कठिनाई से गुजरते हैं उसका सामना करते हैं तब हम चीज़ों को बदलना चाहते हैं क्योंकि हमें system में बहुत सी गड़बड़ियां नज़र आने लगती हैं और जब हम उन सब चीज़ों के आदी हो जाते हैं और जब रोज रोज उन्ही कामों से हमें गुजरना पड़ता है और हम used to हो जाते हैं तब हम बदलाव का विरोध करते हैं हम तब फिर नहीं चाहते की कुछ बदले और स्तिथियों में परिवर्तन नहीं चाहते तब हम क्योंकि तब तक हर परिस्तिथि से हम समझौता कर चुके होते हैं अगर ठीक से देखे तो सिर्फ हम मेहनत से , जिम्मेदारियों से जी चुराना जानते हैं और वही हम चाहते हैं क्योंकि हम हमेशा खुद की सहूलियत के हिसाब से सोचते हैं कभी सोचते हैं दूसरा बदले और कभी ऐसी विचारधारा बनाये रखते हैं कि कोई इसे बदलने के बारे में सोचे भी न। समय नहीं होता हमारे पास अपने हितों के अलावा दूसरों के हित में कुछ करने के लिए और वैसे भी हम सब तो सिर्फ बातों से जाने जाते हैं काम से तो बिलकुल ही नहीं। दोनों ही जगह हम गलत हैं हमें खुद को इतना बेहतर बनाना है कि हर परिस्तिथि में हम ढल सकें और साथ ही साथ दूसरों को उनके अनुसार ढाल सकें । तभी जाकर कुछ बेहतर हो सकता है और हो सकेगा। फालतू बैठकर लफ्फाजी मारने से और डींगे हांकने से कुछ न होगा। जैसे बिना खाये पिए ,भूख नहीं मिटती प्यास नहीं बुझती वैसे ही बिना कुछ करे जिंदगी भी नहीं संवरेगी और स्तिथियाँ भी बेहतर नही होंगी। बेहतर बनों और बेहतर बनाओ ख़याली पुलाव मत पकाओ।जिंदगी में तो फिसलन हर जगह है उन पर चलो और फिसलो भी पर सीखो हर चीज़ से हर उस बात से हर उस लम्हे से जो हमें कुछ नया और बेहतर सीखा कर जाता है जिंदगी के तजुर्बे देकर जाता है प्यार से हँसते हुए और मुस्कुरा कर उनको अपनाओ और अपनों से ,दूसरों से समय समय पर बांटो/ साझा करो।

Saturday 26 March 2016

Love (part 1)

मुझे पता कब चलता है कि मुझे प्यार होगया।मुझे तब लगता है महसूस होता है क़ि मेरे अंदर कुछ है  मुझमें कुछ है जो मुझे अलग सा अहसास कराता है मेरे अंदर एक नयी ऊर्जा का जन्म होता है जो हर पल ख़ुशी का माहौल बनाये रखती है जो मुझे थकने नहीं देती ,मायूस और निराश भी होने नहीं देती। जो मुझे हर पल मुझमे एक नयी जिंदगी का एहसास दिलाती है और जिंदगी को कई नयी दिशाएँ दिखाती है।राहें तो बहुत सारी होती है और उस पल और भी नयी राहें निकल आती हैं चुनना हमें होता है ये मालूम रखते हुए कि कुछ इस पल की भी निशानी हैं समय हमेशा सफलता के प्रतीक के तौर पर देखा जाता है प्यार तो उस बीच बस हो जाता है।हर उस राह को जो प्यार जज़्बात और सफलता के बीच की लक्ष्मण रेखा है संभलकर पार करना पड़ता है ताकि किसी की भी गरिमा को ठेस न पहुँचे। प्यार तो एक लकीर की तरह होता है जो मिटती और बनती रहती है ये अच्छा या बुरा नहीं होता और सुख - दुःख का हिसाब इसमें नहीं होता। हाँ , उतार चढाव इसमें भी जरूर होते हैं लेकिन ये पूरी तरह से प्राकृतिक होता है बनावट की मिलावट इसमें नहीं होती और न ही होनी चाहिए।प्यार में हम खुद से बातें शुरू कर देते हैं हमारे अंदर की सारी बातें निकल कर हमसे बोलने लगती हैं हमारे साथ हंसीं मजाक करने लगती हैं। भूख प्यास कब लगती है और कब बुझ जाती है पता ही नहीं चलता और नींद रातों को कब आती है और कब चली जाती है सुध ही नहीं रहती। दिमाग़ क्या सोच रहा है क्या दिल कर रहा है क्या मन समझ रहा है दिल दिमाग में अंतर ही नहीं नजर आता। लगता है जैसे की दोनों एक होगये हों और जब प्यार पास हो तो लगता है जैसे मुझमें कुछ नहीं है सिर्फ धड़कन है जो महसूस होती है साँस हल्की- भारी होती है और भाव सिर्फ प्यार का होता है उस लम्हा मालूम न होता है कि functioning क्या है body की, मुँह से निकला हर लफ़्ज़ सही गलत की परवाह नहीं करता उन लम्हों में , उसकी फितरत तो बस मुँह से निकल जाने की होती है बातें शुरू करने और खूब बतियानें की होती है सिर्फ एक दूसरे का हाल मालूम करने और दिल बहलाने की होती है।खरीद नहीं सकता कोई इन लम्हों को और बयाँ कर सके तो उसे झील की गहराई तक उतर कर फिर से चढ़ना और ऊपर तक आना पड़ता है अहंकार शून्य होजाना पड़ता है। प्यार होना आसान हो पर मुश्किल इसे समझना और मुश्किल समझकर समझाना होता होता है।

Sunday 20 March 2016

True love एक सच्चा प्यार

True lv
दुनिया की सबसे खूबसूरत चीज , सबसे अमोल (priceless) उपहार (gift ) है ये प्यार! अगर कभी इसके दर्जे की बात आई तो मैं इसे समुद्र मंथन से निकले उस अमृत का दर्जा दूँगा जिसको पा लेने का एहसास बहुत खास और सबसे हटकर होता है जिसका मुकाबला दुनिया की कोई चीज़ नहीं कर सकती । अगर दुनिया बंधी हुई है तो सिर्फ इसी प्यार की डोर पर ,अगर कोई माँ अपने बच्चे से ही प्यार न करे तो इस दुनिया का खड़ा रह पाना बड़ा मुश्किल है 
मैं तो इसे शब्दों में बयां कर रहा हूँ लेकिन शब्द की परिभाषा भी इसके महत्व के सामने सारहीन है और नवविवाहिता के घूँघट के समान लज्जा और अनभिग्यता का परिचय है।
ये तो रही इसके महत्त्व की बात अब जानते हैं कि ये सच्चा प्यार होता क्या है और क्या होते हैं इसके लक्षण ।
सच्चा प्यार एक आंतरिक ख़ुशी और अंतः भावना का प्रतीक है।ये किसी के प्रति भी हो सकता है चाहे वो मनुष्य हो या फिर दुनिया में कुछ और, या फिर दुनिया से परे कुछ। 
कुछ भी हो क्या फ़र्क़ पड़ता है फ़र्क़ तो तब पड़ता है जब प्यार हो और सच्चा हो , चाहे कोई बूढ़ा हो या बच्चा हो।
अब हम बात करते हैं दो जोड़ियों की जो अपनी जवानी में प्यार के दरवाजे में दस्तक देती हैं और अपना सबकुछ इस छोटी पर अमूल्य ख़ुशी के लिए दांव पर लगा देती है।
तब उसे दुनिया जहाँ की फ़िक़्र नहीं होती, फ़िक़्र होती है तो सिर्फ अपने प्यार की, फिर चाहे वो उसे मिल पाया हो या फिर नहीं मिला हो। प्यार करने वाले तो सिर्फ एक दूसरे की ख़ुशी के ख़ातिर जीते हैं और एक दूसरे की बेहतरी की मनोकामना करते हैं।वो ये नहीं सोचते की ये मुझे चाहिए वो तो उस पंछी की तरह प्यार करते हैं जो एक छोटे बच्चे के पास बार बार आता है बच्चे के साथ खेलता है और फुर्र फुर्र उड़ता हुआ चला जाता है और वो बच्चा भी बहुत खुश होता है वो पंछी उस बच्चे के प्यार में इतना मशगूल हो जाता है की उसके प्यार की खातिर वो खुद पिंजड़े में बंद होने को तैय्यार हो जाता है बस यहाँ बच्चे के प्यार करने के तरीके का फ़र्क होता है की वो उसे प्रकृति के अनुसार प्यार करे या फिर मानवीय विकार के रूप में उसे पिजड़े में बंद करके प्यार करे।प्यार तो दोनों ही दशा में है बस फर्क है तो सिर्फ इतना कि दूसरे प्यार में शक की गुंजाईश है भरोसे की कमी है एक डर है और पिंजड़े में बंद करने का मतलब है की बच्चे को अपने प्यार पर भरोसा नहीं है उसे वो गुलाम की तरह रखना चाहता है जबकि वो ये नहीं जानता की प्यार तो सिर्फ खुले आसमान में उड़ता हुआ पंछी है जो कभी इस डाली बैठता है तो कभी उस डाली।पर जिस भी डाली वो जायेगा साया साथ तेरा वो हमेशा ले जायेगा।खूब ही कहते हैं कि इंसान का साया हमेशा उसके साथ चलता है कभी वो बड़ा चलता है तो कभी छोटा चलता है वो हमारे प्यार का प्रतीक होता है उसकी प्रेणना होता है हमारा प्यार हमारे अंदर बाहर सब - हर तरफ होता है हम जहाँ भी जाते हैं वो हमारे लिए,हमारे पीछे हममे होता हुआ हमारे साथ चलता चला जाता है।इसका एहसास ही बहुत सुहावना होता है।जब दो जोड़ियों के बीच प्यार के बीज अंकुरित होते हैं उनके रोम रोम तन जाते हैं दिमाग में रासायनिक क्रियान्वयन होने लगते हैं ध्यान दुनिया से भटक कर सिर्फ एक दूसरे पर ठहर जाता है दिल की धड़कनें भी अस्तव्यस्त होकर कभी ज्यादा तो कभी कम होने लगती हैं।आँखें शुरुआत में नजरें चुराने लगती हैं और समय के साथ साथ वो भी बेशर्म होने लगती हैं मन तो सिर्फ सोचता है अपने प्यार के लिए जैसा पारखी judge नहीं कर पाते अच्छे अछों को वैसा प्यार करने वाले चुटकियों में एक दूसरे को कर लेते हैं।एक दूसरे की छोटी छोटी बातें उन्हें मालूम हो जाती हैं छोटी छोटी कमियां पता चल जाती हैं खुशियाँ और तकलीफ तो वो आवाज और चेहरा पढ़कर ही समझ सकते हैं और बता सकते हैं।और तो और एक दूसरे से रुठने और मनाने की कला में तो वो माहिर होते हैं ये कुछ निशानियाँ होती हैं एक सच्चे प्यार की।

Friday 26 February 2016

साया

मैं कोई परिछायीं नहीं हूँ कि जो सूरज का रुख बदलते ही अपनी पहचान बदल ले।
मैं एक शख्शियत हूँ जो दिल के बदलावों में बदलाव ला सकता है मन के बदलावों में नहीं।
जो ऐसे नहीं बहेगा जैसे पानी मिट्टी में बह जाता है। और न ही ऐसे रुकेगा जैसे जल सरोवर में रुक जाता है।इसे तो बहना है नदी की तरह जो छल-छल करती हुयी अपनी मंज़िल को निकल जाती है, जो रोके से भी जल्दी रूकती नहीं है कहीं न कहीं से अपना रास्ता बना ही लेती है।इसे बढ़ना है उस आग की तरह जो जंगल में लग जाती है।रहना है उस रेगिस्तान की तरह जिसकी रेत बड़ी से बड़ी चीज़ उड़ा ले जाती है और वज़ूद तक मिटा जाती है। बरसना है उस बादल की तरह जिसकी वर्षा सुख दुःख का एहसास दिलाती है।जीना है उस इंसान की तरह जिसके मन मंदिर में सिर्फ प्यार , हमदर्दी और इंसानियत पायी जाती है।

Saturday 13 February 2016

Art

Art is ur mind. How it works. It's simple. It's just about a move on paper. What u suppose to do and where u suppose to go. Whatever u draw in piece of paper u r able to turn it in meaningful sense. Your feelings ur quick and flexible decision makes u an artist. How can u step forward, how can u rotate, break n bind the things easily n quickly and howz ur imagination that's all about how better u r. It doesn't matter how I speak but it's always matters what was the purpose behind that. My performance is art of my life. May God help me in my duty, in my creation, in my life and in the art of desire.