Thursday 21 May 2015

हिंदी and english

हिंदी and english  ये दो भाषाएँ या  फिर हमारी जरूरत,एक संचार का माध्यम और अपनी या किसी भी बात को किसी के द्वारा किसी के समक्ष पेश करने का सरल और आसान तरीका
या फिर एक दौर ,नया चलन ,पढ़े-लिखे की मानक ,फैशन ,लड़ने -झगड़ने का तरीका ,क़ाबलियत साबित करने का तरीका ,बात को मनवाने या फिर खुद को सही साबित करने की भाषा या फिर माध्यम ,दूसरों को लुभाने का और खुद को कुछ अलग सा दिखाने का सरल उपाए या फिर एक ज़रिया। पार्टी organize करनी हो ,ऑफिस में लोगों से बात करनी हो ,बहुत सारे लोगों से मिलना और बात करना हो तो हम सब लैंग्वेज में बहुत फोकस करते हैं और बातों को चटपटा ,स्टाइलिश और बोल्ड बनाने की कोशिश करते हैं। हमारी बातें कुछ फॉर्मल ,कुछ में attitude के साथ इग्नोरेंस ,कुछ mature ,कुछ बचपने से भरी हुई होती हैं। ये लैंग्वेज ,बॉडी लैंग्वेज और ओवरऑल पर्सनैलिटी का कमाल है। जब कभी बड़े लोगों से मिलना हो उनसे बात करनी हो ,लड़कियों को इम्प्रेस करना हो,
जब समझौते हों या तकरार हो ,जब हमें अपनी सही-गलत बातें किसी के सामने रखकर खुद को साबित करना हो ,खुद को इंटेलीजेंट साबित करना हो ; इन सबमें आज हिंदी की महत्ता इंग्लिश से कम होती जा रही है।
ये केवल भाषा या फिर राष्ट्र भाषा की बात ही नहीं है और न ही मुझे इंग्लिश से कोई नफरत है।
बात बस इतनी नहीं है कि आज लोग हिंदी बोलने , पढ़ने से सकुचाते हैं बल्कि आज वो दुनिया के समक्ष खुद की बेइज़्ज़ती सी महसूस करते हैं और हिंदी को नफरत की निगाहों से देखने लगते हैं। हिंदी गानों ,साहित्यों ,पत्रिकाओं ,कविताओं और नारों की संख्या में भारी मात्रा में कमी आ रही है और तो और लोगों की दिलचस्पी भी खत्म होती जा रही है। आज की सोच में पंजाबी और इंग्लिश मिक्स रॉक्स और योयो टाइप ,जस्ट चिल ,कॉम ,shut up, फ़क ऑफ जैसी लैंग्वेज और ऐसे मुद्दे आज के युवाओं को ज्यादा लुभा रहे हैं और ये सब बढ़ती और जरूरत से ज्यादा फ़ास्ट और सबकुछ तुरंत /जल्दी पाने की इच्छा रखने वाली दुनिया का नतीजा है। आज खाना बनाने की जरुरत नहीं पड़ती क्यूंकि आपका मनपसंद खाना जो १०-१5  मिनट में आपके घर तक डिलीवर हो जाता है। कपडे धोने की जरूरत नहीं पड़ती क्यूंकि लॉन्ड्री वाला आपके घर से कपडे लेकर ,उनको धोकर ,प्रेस करके शाम तक आपके घर पर दे जाता है। घर से बाहर निकलने की जरूरत नहीं पड़ती क्यूंकि इंटरनेट पर ही जरूरत का बहुत सारा काम हो जाता है। क्लास में ज्यादा पढ़ने की जरूरत नहीं पड़ती क्यूंकि एग्जाम आते आते इंटरनेट पर एग्जाम से रिलेटेड सब कुछ मिल ही जाता है।
आप सब को लग रहा होगा कि मुझे फ़ास्ट दुनिया और उसके चलन से कोई डर या नफरत सी हो गयी है तो मैं आपको clear करना चाहूंगा कि मैं भी उसी दुनिया का एक हिस्सा हूँ एक भाग हूँ।जब आप मुझमे झांक कर देखेंगे , आप मुझमे भी वैसी ही सी एक दुनिया पाएंगे। मैने भी जाने-अनजाने में बहुत सी चीज़ों को एक्सेप्ट किया लेकिन कभी भी किसी चीज़ को खुद पर हावी नहीं होने दिया। 
आज आप किसी 5* restaurant or multinational companies में जाते हैं तो वहां पर भी आपको हिंदी या इंग्लिश में conversation करना पड़ता है आपके मुह से कुछ बोलते ही आपको महसूस होने लगता है की आपकी भाषा के आधार पर आपकी पेर्सनालिटी judge करली गयी है ।आपकी personality के आधार पर लोग आपको deal करने लगते हैं 
अगर आप किसी भी तौर तरीके में कमतर हो तो आपको आपकी परिस्थिति के अनुसार वो deal करेंगे behave करेंगे और late करंगे ।पहले वो अपने पुराने ग्राहक और बड़ी पार्टी वालों को डील करेंगे फिर आप तक आएंगे और हो सकता है कि आप बेवकूफों की तरह इंतज़ार ही करते रह जाएँ और टाइम निकलता जाये and आपका number आये ही नहीं।ये दशा है आज हमारे देश की जो इंसान को इस तरह से    महसूस कराती है साथ ही साथ उसमें कोई कमी है ऐसा एहसास दिलाती या कराती है।
हर एक भाषा का महत्व उसके एक्शन एरिया में होता है चाहे वो लोकल भाषा का लोकल एरिया हो ,या हिंदी भाषा का हिंदी भाषी एरिया या english का इंग्लिश माध्यम।
किसी भी चीज़ के सही -गलत के माईने कब बनते हैं जब उसको सामाजिक स्वीकृति मिलती है। समाज जिसके साथ होता है वही टिक पाता है किसी भी पर्सनालिटी को जज करने के लिए हम उसके अच्छे पहलु देखते हैं ,बुरे पहलु देखते हैं और फिर दोनों  पहलुओं को मर्ज करके उसकी पर्सनालिटी की इमेज दिमाग में बैठा लेते हैं वो इमेज ही उसकी इम्पोर्टेंस decide करती है कि कैसी भी परिस्थिति में किसे कैसे डील करना है। अगर आपका लहजा ,बात करने का तरीका सब बिलकुल परफेक्ट हो तो भाषा चाहे कोई भी हो और कोई न भी हो , कुछ फ़र्क़ नहीं पड़ता।जैसे प्यार की कोई भाषा नहीं होती है प्यार तो आँखों ही आँखों में हो जाता है एक इशारा ही काफी होता है पूरा मतलब समझने के लिए ,एक नज़र ही काफी होती है प्यार जताने के लिए। भाषा तो इशारों में भी होती है ये  communication का पार्ट है भाषा लिखी जाती है ,पढ़ी जाती है ,बोली जाती है ,सुनी जाती है ,express की जाती है आप अगर अपनी बात दूसरे को समझने में कामयाब होगये तो आपकी भाषा और आपका माध्यम एक सफल भाषा और एक सफल माध्यम का प्रतीक है। अगर भाषा को आप गलत तरीके से यूज़ कर रहे हो तो इसमें भाषा का कोई कसूर नहीं है इसमें कसूरवार खुद आप हो जो भाषा को माध्यम बनाकर गलत पर गलत किये जा रहे हो।
बेशक हिंदी एक सरल माध्यम है अपनी बात कहने का हिंदी जैसी भाषाओँ के भाषियों के समक्ष लेकिन इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता की हिंदी जटिलताओं से सरलता में बदल रही है सिर्फ एक माध्यम के तौर पर। आज लोग बड़े बड़े फंक्शन्स में ,film fare अवार्ड्स  में हिंदी और उसके कठिन शब्दों को मजाक के तौर में इस्तेमाल किया करते हैं और लोगों को एंटरटेन करते हैं।मैं  इस पर कोई कमेंट नहीं करूंगा कि ये सही या गलत और मैं आज इस बात से भी इंकार नहीं कर पाउँगा कि आज हमें हिंदी -उर्दू जैसी भाषाओँ की वैसी जरूरत नहीं रह गयी जैसी पहले हुआ करती थी। आज के मॉडर्न समाज में हिंदी की घटती लोकप्रियता ,हिंदी  कमतर इस्तेमाल ,मॉडर्न प्रचलन में हिंदी की नाममात्र की सहभागिता ,हिंदी को मॉडर्न समाज से पिछड़े समाज की तरफ धकेलती जा रही है क्योंकि पढ़ा लिखा समाज हिंदी की घटती लोकप्रियता के कारण ,हिंदी के इस्तेमाल को अपनी शान में गुस्ताखी समझता है और चाहते हुए भी इसके इस्तेमाल से खुद को दूर रखने लगता है।
english के प्रभाव को कभी काम नहीं आकां नहीं जा सकता और न ही उसको कोई बढ़ने से रोक सकता है। जैसे कोई भगवान को नहीं छोड़ता चाहे वो उसे जिस भी रूप में क्यों न अपनाये वैसे ही कोई भाषा को नहीं छोड़ सकता फिर चाहे वो भाषा से कैसे भी जुड़ा क्यों न हो। इन दोनों चीज़ों के तार दिल,दिमाग और आत्मा से जुड़े हैं जो हमें हमारे बचपन से लेकर हमारे आज तक हम सभी को विरासत में मिले हैं।
जरुरत है सब की पोजीशन के हिसाब से ,स्थान के  हिसाब से ,सिचुएशन की गंभीरता और कार्य की जटिलता देख कर भाषा का चुनाव कीजिये और अपनी बात सरल करने का उसे माध्यम बनाइये। नफरत किसी भी भाषा से मत कीजिये  और अगर लगता है  कोई भाषा कमतर है या फिर अच्छी नहीं है या आपके लायक नही है तो दो काम किये जा सकते हैं अगर हो सके तो उसे बेहतर बनाने का प्रयास कीजिये या फिर उसको समझने और उसके बारे में किसी भी जानकारी को अपनी जिंदगी  का हिस्सा मत बनने दीजिये बस जानिए की वो exists करती है आपको समझ नहीं आती है आपकी समझ के बाहर है तो किसी ऐसे व्यक्ति या ऑपरेटर ,ट्रांसलेटर,कनवर्टर से कांटेक्ट करिये जो आपको वो बात आपकी  समझा दे। its  too  easy .
कोई भी जानकारी जो सिर्फ आपकी भाषा की पकड़ की वजह से आप तक नहीं पहुँच पायी ,ऐसी सिचुएशन आपके लिए लाभप्रद भी हो सकती है और हानिकारक भी,its  depends on your situation एंड your destiny .
जैसे दिल के रिश्तों का मतलब ही जान-अनजान से है। बुझता और अनभिज्ञता भी बहुत से कारणों का स्वयं में एक हल है अगर जिंदगी का समस्या से वास्ता ही न पड़े तो जिंदगी में कैसी समस्या।
now a days english is our formal language and टूटी-फूटी english is our general language.और भाई पंजाबी तड़का जब लग जाये तो मजा हि आ जाता है पंजाबी मिक्स रॉक्स ,जरुरत बन गयी है आज की, इंग्लिश! ,पढाई-लिखाई ,मेट्रोज ,एयरलाइन्स,कोर्ट्स ,मॉल्स ,गेम्स,abroad ,इंटरनेट ,email ,mobiles ,रेलवे टिकट irctc इत्यादि। लगभग सभी जगह आज अंग्रेजी बहुत धड़ल्ले से /ज्यादा यूज़ हो रही है और आज के इस नए ज़माने में इसका महत्त्व भी बहुत बढ़ गया है या ये भी कह सकते हैं की हमारे हिंदी प्रधान समाज ने मॉडर्नाइजेशन के साथ साथ इसका महत्व इतना ज्यादा बढ़ा दिया है जिसे कम कर पाना लगभग नामुमकिन है। In case of English :
generally you are pretending to be qualified.you think it's a more powerful way of touching heart with no guilt like love.
अगर आज के नज़रिये से देखें तो प्यार  में शब्दों का भाव भी भाषा का एक रूप प्रदर्शित करता है जैसे कि ;
मैं आपसे प्यार करता हूँ। ……… डार्लिंग i love you .
क्या तरीका है क्या फीलिंग है सब बकवास ,ये एक नजरिया है जिससे इंसान तौलता है अपनी और आपकी जिंदगी के तराजू में ,वो  देखता है कि आप कितने एडवांस हो कितने रोमांटिक हो। किसी और के सामने आपके bf या gf को लेकर आप कभी मायूस तो होगे। ये लैंग्वेज का फ़र्क़ है जब इंसान सोचता है कि आप उसके लेवल के हो भी या नहीं। लैंग्वेज के इस्तमाल करने के तरीके की वजह से आज शब्दों का भाव ,प्यार का भाव ,जिंदगी , सोच  … सामाजिक मामले में कहीं हद तक लैंग्वेज choice and  interpretation ही  तय कर देती है। आज का समाज मानता है की हिंदी एक पुराना तरीका होगया है वेद,पुराण तक ही सीमित  रह गया है बाबा आदम के ज़माने की भाषा है ये ,इसका प्रयोग करके एडवांस लोगों की इज़्ज़त का भाव गिर जायेगा। उनकी शान में गुश्ताखी हो जाएगी। English is an advance language and the whole world is using it as mother tongue or international language. ये चलन में है ,इसका एक स्टेटस है ,बड़े लोग इसका इस्तेमाल करते हैं खुद को और बड़ा  लिए। ये सोच है आज की। ये बिलकुल गलत है लेकिन अफ़सोस यही सच है आज हिंदी कमजोरों की निशानी के तौर पर पहचानी जा  मन सम्मान सब हथेली पर लेकर चलते हैं ताकी जब जरुरत पड़े बड़ी आसानी से धो सकें।हिंदी और हिंदी भाषी की चुटकी ले सकें। जब कोई शुद्ध हिंदी बोलता है तब बहुत से  उसे घूर घूर कर   प्राणी आ गया ये ,कहाँ से बिलोंग करता है ये ,ये घटिया सोच रहती है अधिकतर की।
मैं हिंदी और अंग्रेजी दोनों में से किसी को भी गलत नहीं मानता हूँ मेरा मानना ये है कि समाज और दुनिया चलन को देखती है तथ्य नहीं। फैशन देखती है अपनाती है मूल भाव नहीं।
as a cool guy कोई बंदा  या बंदी आज की date में हिंदी को ही बस अपनाता है तो बहुत सी चीज़ें वो या तो खुद में कम पाता  है या फिर सामने वाला उसका बहुत छोटा आंकलन करता है वहीँ दूसरी ओर इंग्लिश के आस्पेक्ट में इंसान खुद में एक कॉन्फिडेंस महसूस करता है चाहे वो झूठा ही क्यों न हो। 
मैं इसको भाषा का कसूर नहीं मानता हूँ  लेकिन मैंने कई बार इंग्लिश को लोगों के झोठे सच का सहारा बनते हुए देखा है की झूठ बोलने के लिए किसी पर हावी होने के लिए कैसे ओग इंग्लिश का सहारा लेते हैं तक समाज उनको एक सभ्य की तरह डील करे ,चाहे वो जितनी भी अभद्रता क्यों न कर चुके हों। झूठ का सच के मुखोटे में लिपटा होना,झूठ को बड़ी सफाई से हक़ के साथ अमलीजामा पहनाना ,,बुराई हो ,अश्लीलता हो,अभद्रता हो या फिर बेबसी,ये सब कुछ सबके सामने बड़े सुन्दर तरीके से परोसने और सबसे जोर देकर मनवाने में लोग इंग्लिश का बहुत अच्छी तरह यूज़ करते हैं। 
मैं ये जनता हूँ कि ये सिर्फ मेरा वहम है इसमें इंग्लिश और हिंदी का या फिर और किसी चीज़ का कोई दोष नहीं है लेकिन यहाँ ये कहना मैं लाज़मी समझूंगा कि इंग्लिश को हमने जन्म नहीं दिया है , हमने केवल समझा और अपनाया है इसे  और शायद पूरी तरह अपना भी नहीं पाएं हैं हम इसे ,लेकिन हिंदी में हमारा और हमारे देश का जन्म हुआ है हम इसकी और ये हमारी पहचान है ,ये हमारी धरोहर है जब हम अपने देश से अलग थलग बाहर किसी देश में पड़े होते हैं तब हम इसके महत्व को शायद अच्छी तरह से समझ पाते हैं हिंदी को हमने जन्म दिया है ,इसे अपनाया नहीं है अब लगता है शायद इसे हम पूरी तरह जिन्दा भी नहीं रख पाये हैं क्यूंकि हम शायद अच्छी तरह समझते नहीं हैं कि  बात कहने के लिए  भाषा चाहिए ,माध्यम चाहिए और समझने वाले का समय और उसकी कद्र भी करनी आनी चाहिए। इसलिए आपको जो अच्छे से आता हो उसे दिल से कहो ,जरूरी नहीं है हिंदी! अंग्रेजी में कहो। लेकिन अपनी लैंग्वेज तो अपनी लैंग्वेज होती है इसका फ़र्क़ आपको विदेशों में दिखेगा, जब महीनों तब आपके कानों में हिंदी का एक वर्ड तक नहीं पड़ेगा ,तब आपको इसकी याद आएगी क्योंकि आपकी मदर टंग आपकी जरूरतों ,आपके समाज और आपके सम्मान की धरोहर होती है ,इस बात को कभी नहीं भूलना चाहिए। पर आज इस बात को भी सिरे से नकार नहीं सकते कि इंग्लिश आज हमारे दिल ओ दिमाग पर इस कदर हावी है , हम सोच कर भी उससे अलग नहीं हो सकते। हिंदी का भी यही हाल है।  हमारा दिल ,हमारा दिमाग हिंदी का आदी है सुनकर ,सोचकर और बोलकर,,,,चाहे कुछ भी करलो लेकिन उससे अलग ,उससे अछूते नहीं रह सकोगे। 
एक बात का ध्यान हमेशा रखना-   
चलन हमसे बनता है हम चलन से नहीं।  
फैशन हमसे बनता है हम फैशन से नहीं।
शुरुआत करो चीज़ों की खुद पर थोपो नहीं कभी। 
अपनाओ तभी चीज़ों को जब उसमे कुछ अपना सा लगे। 
बह जाओ उसी के साथ जब वो बहने को कहे। 
थम जाओ उसी के पास जब रुक -रुक कर वो चले। 
परवाह नहीं है भाषा की चाहे वो जो कुछ भी हो। 
परवाह तो बस समझ की है क्या पता वो ये समझती ही न हो। 

Sunday 10 May 2015

मेरे शब्द

if we are existing and suppose to be exiting :that's only possible due to presence of photon in the nature and our lives.
PHOTON makes the whole lives of the existing world: as we see ,as we feel,do,make fun and enjoyment and respond : each and every creativity of our lives are just because of photon.photo ही हमारी जिंदगी में सवेरा लेकर आया है सदियों से सदियों तक एक मात्र रौशनी की किरण फोटोन ही रहा है । इसी ने हमें अंधकार और उजाले में फ़र्क़ समझाया है । सदियों से यही एक मात्र कड़ी रही है जो हमारी ऊर्जा और हमारे भार  को संतुलित करे हुए है । इलेक्ट्रान हो या प्रोटोन ,एटम हो या फिर न्यूट्रॉन ,mass ,higgsboson  और एनर्जी सब इसी की उपज हैं तभी इन् सब को हम एक दुसरे मे  बदल सकते हैं । फोटोन जीवन की किरण है जो life को create करती है। 
इस संसार में सुगंध (गंध or  smell ) क्यों पायी जाती है इसकी existence  कैसे और किस कारण की वजह से है?
सुख और दुःख पर ही यह संसार क्यों टिका हुआ है ?आराम और कष्ट  तो इस शरीर के रूप हैं न की आत्मा के ,ये तो एक  feeling और अनुभव है जो हर इंसान और  जनजाति अपने जीवन में व्यतीत करती और संजोती है। इनका शरीर के अलावा आत्मा से क्या relation है मोक्ष से क्या relation है,परमात्मा और स्वर्ग  एवं नर्क से क्या relation है ।
सुख और दुःख ,स्वाद और संवाद के परे क्या होता है क्या हमें इससे जानने की जरूरत है हम क्या करेंगे इसे जानकर । हमें क्या मिल सकता है इसे जानकर ,……।`
obviously आप यही कहेंगे सुख-दुःख ,स्वाद-संवाद ,लेकिन यही मेरा प्रश्न है ।आखिर दुनिया किस चीज़ की तलाश में'है जो शायद उसे पता ही नहीं है या फिर वो इतनी मामूली है कि पता करके भी क्या होगा ,कोई फायदा नहीं है । आज की दुनिया की यही टेंडेंसी है फायदे के ऊपर उसे कुछ नहीं दिखता है long term  सोच की कमी है ।
अच्छा तो इसे ऐसे सोचो -        मरने के परिणाम में आपको क्या मिलेगा? ....  ………
यहाँ तो मिलेगा शब्द ही व्यर्थ है अनुभव करना शब्द भी गलत है ,लेकिन क्या ?????
ये तो मैं भी नहीं जानता और शायद कोई भी नहीं । मिलेगा शब्द का मतलब और वजूद दोनों ही इस मायावी दुनिया के साथ जुड़े हैं अगर कुछ है तो सिर्फ इसके अंदर है बाहर  कुछ भी नहीं है और जो बाहर है वो सबके बस के बाहर है अगर अपने मुद्दे पर वापस आकर फिर से सोचें तो आपको खुद महसूस होगा जैसे मरने के  बाद अगर आपके पास कुछ हुआ भी तो आप उसका करोगे क्या ,उसके होने या न होने का भी क्या मतलब रह जायेगा :उसके लिए क्या वजह होगी आपके पास ,न तो उस समय आपके पास आपका शरीर होगा न कोई फीलिंग :
आप उसे रखोगे कहाँ ,उसका आप करोगे क्या ,किससे बांटोगे किससे शेयर करोगे ,हमेशा बाँटने से शेयर करने से आप.....  क्यों किसी भी चीज़ का मतलब ,अर्थ किसी दुसरे से जरूर होता है फिर चाहे वो ज्ञान हो ,पैसा हो ,दुश्मन हो या फिर प्यार । अगर कोई और नहीं हमसे  सुख -दुःख बाँटने वाला ,समझौता करने वाला तो किसी भी बात का कोई महत्त्व और मतलब नहीं है वो सब सीमित और लिमिटेड है हमारे खुद के लिए और सबके लिए । लोग अगर ये भी कहें की शाबाशी मिलेगी ,शान और शौकत होगी पूर्वजों के सामने । ये सब कहने  में ही अच्छा लगता है मेरी मानें इससे कुछ भी नहीं होगा जो आप धरती पर रहकर पा सकते हो महसूस कर सकते हो अनुभव ले सकते हो शेयर कर सकते हो अर्थात बाँट सकते हो वो सब और कहीं नहीं कर सकते क्यूंकि आपकी आत्मा और दुनिया केवल आपके शरीर को पहचानती है आपको नहीं ।
मृत्युपर्यन्त शब्द और अर्थ सब व्यर्थ हैं कौन मिलेगा क्या मिलेगा किससे मिलेगा किसको मिलेगा क्यों मिलेगा और अगर मिलेगा  भी तो क्या होगा उसका क्या होगा उससे किसको क्या फ़र्क़ पड़ेगा आपको फ़र्क़ पड़ेगा कुछ या फिर किसी और को भी कुछ फ़र्क़ पड़ेगा ।
मेरा मानना  है मिलेगा !इस स्टेज और सिचुएशन (after death )में  है ये शब्द ही अर्थ हीन और बेमानी सा है ।

मैं कहता हूँ कष्ट  ही मिले सही लेकिन इस दुनिया में आपको कुछ तो मिलता  है इस दुनिया में आपकी उपस्थिति ही आपको एक बहुत बड़ा वरदान है इसे व्यर्थ मत जाने दो ।
व्यर्थ में जिंदगी और ज़िंदगियों को मत बर्बाद करो । इस हसीन  दुनिया को खूबसूरत बनाने की जितनी भी मुमकिन  कोशिश  कर सकते हो करो । सबसे पहले अपने अंदर की खूबसूरती को ढूंढो ,उसे पहचानो और उस खूबसूरती को अपने  से बाहर निकालो । सब कुछ अपने आप खूब सूरत हो जायेगा ।  दुनिया को देखो समझो महसूस करो ,फिर चाहे वो एक अच्छा या फिर बुरा सपना ही क्यों न हो । लेकिन ये तुम्हारी जिंदगी है तुम्हारा वरदान है ,यहाँ हार मत मानों क्यूंकि ज़िंदगी ही सब कुछ है अगर ज़िंदगी नहीं तो कुछ भी नहीं ।


समाज भगवान को पहचानने की और जानने की कोशिश  करता है जिसमे वो अपना तन,मन,धन,समय और जीवन साथ ही साथ जिंदगी के बहुत से पक्ष /पल दांव  पर लगा देता है उसे लालसा होती है चाहे वो किसी भी चीज़ की हो लालच (रावण )हो या फिर मोक्ष (विभीषण),दोनों ही  इक्षाएं किसी उद्देश्य के फलस्वरूप पैदा होती हैं अब कौन सा उचित है और कौन सा अनुचित ये तो काल समय चक्र और कुछ पैमाने ही बता सकते हैं ।
 विधाता के पास जाना ही लालसा का परिणाम है फिर चाहे वो कष्ट का प्रतिशोध हो या सुख की शुक्रवानी अर्थात शुक्रिया हो ,या फिर कुछ पाने की ,जीने और मरने की लालसा हो ।
इससे  तो अच्छा है कि खुद को पहचानो ,खुद के अंदर झांक के देखो क्यूंकि भगवान तो हम ही बनाते हैं और वो हमसे ही बनता है (जैसे इंसान से बच्चे का जन्म होता  है )वो  कहीं नहीं होता है । न ही वो हमारे अंदर होता है लेकिन जैसे जैसे हम अपने अंदर झांकते जाते हैं खुद में लीन होते जाते हैं खुद को समझते ,सुधारते  और संवारते जाते हैं वैसे वैसे हम उसके रूप में और वो हमारे रूप में, हमारे शरीर में, हमारी आत्मा में साकार होने लगते हैं । तब कहीं जाकर भगवन का मुझमे और मेरा मुझमे और उनमें जन्म होता है ,प्रवेश होता है । एक उत्पत्ति साकार होती है । खुद के लिए भी और उस समाज के लिए भी जिसने नाम दिया है चाहे वो मेरा हो या भगवान । खुद को समझो>>>>जानों >>>और  महसूस करो फिर अपनी नज़र दूसरों तक या कहीं और लेजाओ ।अपनी समझ का दायरा  जब आप चरम सीमा तक पहुंचा दोगे तब फिर  ....
इसी में मैं समझता हूँ मोक्ष है यही मार्ग है ।
लोग समझते हैं जिंदगी किसी न किसी की देन है जो माता -पिता खानदान और समाज से परे है उसका शुक्रिया करने की जरूरत है इसलिए लोग उसे भगवन मानकर उसे अपना ideal  बना लेते हैं । मंदिरों,पत्थरों, मूर्तियों,लेखों,पत्रों,चिन्हों,मस्जिदों ,तस्वीरों और न जाने कितने  तरह के रूपों में ढूंढना शुरू कर देते हैं । लेकिन मैं  कहता हूँ रुको !
बात तो मेरे अस्तित्व की चल रही है ये तो मुझसे ही शुरू होगा और मुझ पे ही खत्म ,तो मुझ से ही शुरू करो न ।
यहाँ वहां कहाँ खोज रहे हो और वैसे तो मिलना नहीं। …मिलना …।
और अगर मिला भी तो क्या करना है, क्या करोगे, कभी सोचा है! अगर मुझमे मिल गया तो कुछ सोचना भी जायज है क्यों कि  मेरा वजूद है ,मैं कम से कम  खुद को तो और खुद के बारे में तो जानता ही हूँ। चाहे जो भी चीज़ हो ,बात हो, अनुभव हो,feeling हो ,वाणी हो, सुगंध हो  मुझमे ही तो होगी --मुझसे ही तो होगी।
मैं जानूंगा लेकिन इसके लिए  मेरी आत्मा ही नहीं मेरा शरीर भी  साथ होना जरूरी है ये दुनिया और ये वातावरण भी जरूरी है वार्ना सब बिन मतलब सा है.।
आपको यह जानकर आश्चर्य होगा की मेरा हर एक कदम मुझसे कुछ मशवरा करता  /सलाह लेता सा प्रतीत होता है। मुझसे कुछ पूछता हुआ और प्रश्न करता हुआ सा प्रतीत होता है अंततः निर्णय आपका होता है।
वो जैसा भी हो उसका परिणाम जैसा भी हो ,जो ये परिस्थिति और अनुभव आप महसूस करते हो यही आपकी पहली सीढ़ी है जो आपको आपके खुदके ,आपकी आत्मा के दर्शन कराते हैं। ये आपके साथ हर पल हर क्षण रहता है इसी का संतुलन ही तो है सब कुछ!
हर इमारत की नीव ,हर रस्ते की सीढ़ी ,हर ताले की चाभी और शुरुआत या फिर अंतिम छोर आपकी बात का ,आपके निर्णय का, परिणाम का ,जिंदगी की /का।
मेरा मनना है दुनिया का बंधन भी यही है शुरुआत भी यही है और अंत भी यहीं है।

मेरे शब्द। …………………………………………। ओशो