Tuesday 21 July 2015

तू

तुम मुझमें हो । 
तुम मैं नहीं हो।

इस दिल में हो पर
जहन में नहीं हो।

यादों में हो लेकिन 
मेरी हर याद नहीं हो।

मेरे सपनों में हो,
मेरी परछांई नहीँ हो।
मेरी बातों में भी हो पर
मेरे जज़्बात नही हो।

मुलाकातों में तो हो ,
तुम मेरे साथ नहीं हो।

नशा हो मेरा ,हल्का है मगर थोड़ा । ऐ हमदर्द मेरे !सूना है बहुत दिल मेरा। 
अगर याद न आये तेरी ,होता नहीँ मुझमें सवेरा।
जब निकल जाएगी तू इस दिल से
तब मैं हो जाऊंगा घना अँधेरा।

Wednesday 8 July 2015

art


what is art and how it's related to real life and is it visualization of reality? or beautification of real world on paper ? there are so many thing which i wanna tell you in this article.
when i pass through a mirror i found so many spots in it then i think "ये दाग कहीं मुझमे न हो जाएं" 
when i like to be a simple person i don't know that these spots are of mine or of the mirror.
And when i think inside of myself then i realise "दाग मुझमे हैं mirror तो बस एक ज़रिया है "
Art is just like a mirror of artistist.It shows his expression, his mental state,her sensitivity,his thoughts and his & her flow of love and affection naturally passing and coming from their heart.

Wednesday 3 June 2015

Why we need success

हमारा डर हमारा control है दुनिया में जीने का ,survive करने का  और साथ ही साथ डर हमारा बोध है conscious level है जो हमारी सोच की उपज और जिंदगी की एक बेहतर दिशा है हमें पता होना चाहिए की कहाँ हमें डरने की जरूरत है और कहाँ हिम्मत दिखाने की। डरना हमेशा उस चीज़ से चाहिए जिसके बारे में हम कुछ भी नहीं जानते हैं जो हमसे और हम जिससे पूरी तरह अनजान हों।   
हम छिपकली को भगाते हैं अपने कमरे से ,क्योंकि हम डरते हैं उससे या उसकी activity से ,उसके natural nature&behavior से।
रास्ते में भौंकते हुए कुत्तों को पत्थर मारकर भगाते हैं या बिना देखे डर को काबू में करके धड़कन normal रखकर ,mind normal and quite रखकर आराम से वहां से निकल जाते हैं । हम जानवरों को डराते हैं क्योंकि हम उनसे डरते हैं और अपने डर से निजात पाने के लिए या फिर उस situation को overcome  करने के लिए या हर बार आपके साथ या बार-बार किसी और के साथ कोई घटना न हो जाये ,इसके लिए जानवरों को डर का एक सबक देने की कोशिश करते हैं।(यहाँ मेरा मकसद जानवरों को नुक्सान पहुँचाने से बिलकुल भी नहीं है मैं यहाँ एक general thinking और एक आम  इंसानी सोच को represent कर रहा हूँ कि जिससे हमें डर लगता है उस डर से निजात पाने के लिए हम उसे डराने की कोशिश करते हैं कदम -कदम पर गिराने की कोशिश करते हैं ,हर जगह जहाँ भी मौका मिलता है उसे बदनाम करने की कोशिश करते हैं उससे दुश्मनी बसा लेते हैं अपने दिल में।)
ठीक ऐसा ही इंसानों के साथ होता है इंसान हमेशा दूसरे इंसान से डरता है ,insecure महसूस करता है ,ईर्ष्या करता है या comptite करने की कोशिश में लगा रहता है।कोई भी नया idea उसको आता है जल्दी share करना नहीँ चाहता । डर! डर भरोसे में कमीं आज के दौर में आज के समय।ये सिर्फ इंसानी सोच में लंगड़ापन /अपंगता है और कुछ नहीं।
डर क्या है ?हम तो सांप से भी डरते हैं शेर से भी डरते हैं बिच्छु से भी डरते हैं चींटी से भी डरते हैं और यहाँ तक भी हम अपने आप से भी डरते हैं और जब भी हमें डर लगता है तो हम frustrated हो जाते हैं और फिर दूसरों पर अपना frustration निकालने की कोशिश करते हैं तरीके बहुत सारे होते हैं लेकिन सबका मकसद और result एक ही होता है।डर!डर पैदा करना।इसको पैदा करने के नए नए तरीके इज़ात करना।आतंक भी डर के बलबूते पनपता और फैलता है।
हिम्मत एक ऐसी ताकत है जो हमारे डर को काबू में रखती है और साथ ही साथ हमारे एहसास और potentials में बदलाव करती है जिससे हम चीज़ों से useto हो जाते हैं और हमारा डर  खत्म होता जाता है। यही समय के साथ हमारा experience बन जाता है और इसी एक्सपीरियंस को साथ में लेकर हम दूसरों के डर  को काबू में करने या खत्म करने में जुट जाते हैं जो समय के साथ -२ दूसरों का एक्सपीरियंस बनता जाता है।
आज इंसान जब भी success की पहली सीढ़ी चढ़ता है उसका डर कम होता जाता है जिसे वो पहले अपना डर समझता था उसमे गिरावट आने लगती है और साथ हि साथ उसके नए डर शुरू भी होते जाते है ।(security,money,bank balance,shares ,family )

Tuesday 2 June 2015

Universe मेरा नजरिया मेरी खोज

मेरा मानना है कि ब्रह्माण्ड भी एक इंसान है जो हमें उस नज़रिये से देखता है जैसे हम चींटी जैसी छोटी प्रजातियों or माइक्रोस्कोपिक जनजातियों को देखते हैं।एक छोटी प्रजाति जिसके केवल समूह के बारे में हम  जानते हैं ।जिसका नाम ,व्यवहार ,फायदा ,नुक्सान,वंसज,विशेषताएं हम जानते हैं या जानने की कोशिश में लगे रहते हैं।हम उसकी एकता जानते हैं उसका आचरण जानते हैं लेकिन न तो हम उसकी feelings जानते हैं ,न उनकी बोली जानते हैं समझने की कोशिश कर सकते हैं लेकिन जान नहीं सके और न हि हम उनकी सोच जान सकते हैं और समझ सकते हैं।शायद ब्रह्माण्ड में हम चीटियों से भी छोटे हों या फिर इतने छोटे कि शायद उसको हमारे बारे में इस मानव जाति के बारे में मालूम ही न हो।वो शायद हमारी हि तरह जनजातियां और प्रजातियां खोजने में लगा हो याफिर उसके लेवल पर इस तरह की कोई चीज़ ही नही होती हो जिससे उसे इस तरफ सोचने का मौका मिले।उसकी सोच ही different हो जहाँ जीना-मरना,जीवन-जनजाति,सोच-दिमाग,व्यव्हार-नेचर ये सब किसी भी माईने में न हों।क्या पता उनका काम इस सब के परे किन्हीं और मूलभूत आवश्यकताओं पर टिका हो जिसका हमारी दुनिया की किसी भी चीज़ से कोई लेना देना न हो।वो इस सब से बहुत बड़ा हो जिसको हमारी सोच भी न सोच सकती हो।
जैसे बहती हुई नदी को ये नहीं मालूम होता कि उसके साथ कंकड़ भी बह रहे हैं।दो कंकड़ आपस में बहस कर रहे होते है -एक बोलता है कि मैं इस नदी को रोक के दिखाऊंगा तो दूसरा कहता है देखता हूँ मैं तू कैसे रोकता है नदी को और दूसरी तरफ बहती नदी है जिसे ये भी नहीं पता कि उसमे दो कंकड़ हैं जो उसको लेकर लड़ रहे हैं उनकी बातें or conversation पता होना तो बहुत दूर की बात है ,उसका काम है बहना और वो बहती जा रही है, ऐसी ही हमारी स्थिति है ब्रम्हांड में ।
जो चीज़ हमें regular और रूटीन में दिखतीं हैं हमें वो सारी दुनिया की चीजें systematic और symmetric दिखती हैं लेकिन हमें पता ही नहीं होता कि चीजें इतनी छोटी या इतनी बड़ी भी हो सकती हैं। जिसके systematic होने का हम अनुमान भी नहीं लगा सकते थे, उनके माईने उसके आकर ,उसकी position,shape की बदौलत हमारी उम्मीद से बिलकुल हट कर हो जाती है।जब तक पृथ्वी को बाहर से नहीं देखा गया तब तक कोई मानने को भी तय्यियार नहीं था कि पृथ्वी गोल और गेंदाकार है। सब उसको चपटा ही समझते थे। बिलकुल ऐसा ही आज है जब तक फुल प्रूफ न दो तो कोई बात मानने को तय्यियार ही नही होता है । सारी चीज़ें बहुत छोटे और बहुत बड़े लेवल पर हमें सिमेट्रिक और सिस्टेमेटिक दिखती हैं  शायद वो इतनी उबड़-खाबड़ हों लेकिन उनकी speed उनकी बनावट हमारी आँखों को धोखा सा देती हैं।जैसे-running fan ,spinning earth seemed to be circular or spherical because of their speed and microscopic corner of table and telescopic surface of the sun by shape seems same.I think it's a natural gift given to us given by nature.how we can see,think,imagine speed ,shapes,colors,feelings.?
i don't know universe is a start like a rising sun or end like sunset.

Thursday 21 May 2015

हिंदी and english

हिंदी and english  ये दो भाषाएँ या  फिर हमारी जरूरत,एक संचार का माध्यम और अपनी या किसी भी बात को किसी के द्वारा किसी के समक्ष पेश करने का सरल और आसान तरीका
या फिर एक दौर ,नया चलन ,पढ़े-लिखे की मानक ,फैशन ,लड़ने -झगड़ने का तरीका ,क़ाबलियत साबित करने का तरीका ,बात को मनवाने या फिर खुद को सही साबित करने की भाषा या फिर माध्यम ,दूसरों को लुभाने का और खुद को कुछ अलग सा दिखाने का सरल उपाए या फिर एक ज़रिया। पार्टी organize करनी हो ,ऑफिस में लोगों से बात करनी हो ,बहुत सारे लोगों से मिलना और बात करना हो तो हम सब लैंग्वेज में बहुत फोकस करते हैं और बातों को चटपटा ,स्टाइलिश और बोल्ड बनाने की कोशिश करते हैं। हमारी बातें कुछ फॉर्मल ,कुछ में attitude के साथ इग्नोरेंस ,कुछ mature ,कुछ बचपने से भरी हुई होती हैं। ये लैंग्वेज ,बॉडी लैंग्वेज और ओवरऑल पर्सनैलिटी का कमाल है। जब कभी बड़े लोगों से मिलना हो उनसे बात करनी हो ,लड़कियों को इम्प्रेस करना हो,
जब समझौते हों या तकरार हो ,जब हमें अपनी सही-गलत बातें किसी के सामने रखकर खुद को साबित करना हो ,खुद को इंटेलीजेंट साबित करना हो ; इन सबमें आज हिंदी की महत्ता इंग्लिश से कम होती जा रही है।
ये केवल भाषा या फिर राष्ट्र भाषा की बात ही नहीं है और न ही मुझे इंग्लिश से कोई नफरत है।
बात बस इतनी नहीं है कि आज लोग हिंदी बोलने , पढ़ने से सकुचाते हैं बल्कि आज वो दुनिया के समक्ष खुद की बेइज़्ज़ती सी महसूस करते हैं और हिंदी को नफरत की निगाहों से देखने लगते हैं। हिंदी गानों ,साहित्यों ,पत्रिकाओं ,कविताओं और नारों की संख्या में भारी मात्रा में कमी आ रही है और तो और लोगों की दिलचस्पी भी खत्म होती जा रही है। आज की सोच में पंजाबी और इंग्लिश मिक्स रॉक्स और योयो टाइप ,जस्ट चिल ,कॉम ,shut up, फ़क ऑफ जैसी लैंग्वेज और ऐसे मुद्दे आज के युवाओं को ज्यादा लुभा रहे हैं और ये सब बढ़ती और जरूरत से ज्यादा फ़ास्ट और सबकुछ तुरंत /जल्दी पाने की इच्छा रखने वाली दुनिया का नतीजा है। आज खाना बनाने की जरुरत नहीं पड़ती क्यूंकि आपका मनपसंद खाना जो १०-१5  मिनट में आपके घर तक डिलीवर हो जाता है। कपडे धोने की जरूरत नहीं पड़ती क्यूंकि लॉन्ड्री वाला आपके घर से कपडे लेकर ,उनको धोकर ,प्रेस करके शाम तक आपके घर पर दे जाता है। घर से बाहर निकलने की जरूरत नहीं पड़ती क्यूंकि इंटरनेट पर ही जरूरत का बहुत सारा काम हो जाता है। क्लास में ज्यादा पढ़ने की जरूरत नहीं पड़ती क्यूंकि एग्जाम आते आते इंटरनेट पर एग्जाम से रिलेटेड सब कुछ मिल ही जाता है।
आप सब को लग रहा होगा कि मुझे फ़ास्ट दुनिया और उसके चलन से कोई डर या नफरत सी हो गयी है तो मैं आपको clear करना चाहूंगा कि मैं भी उसी दुनिया का एक हिस्सा हूँ एक भाग हूँ।जब आप मुझमे झांक कर देखेंगे , आप मुझमे भी वैसी ही सी एक दुनिया पाएंगे। मैने भी जाने-अनजाने में बहुत सी चीज़ों को एक्सेप्ट किया लेकिन कभी भी किसी चीज़ को खुद पर हावी नहीं होने दिया। 
आज आप किसी 5* restaurant or multinational companies में जाते हैं तो वहां पर भी आपको हिंदी या इंग्लिश में conversation करना पड़ता है आपके मुह से कुछ बोलते ही आपको महसूस होने लगता है की आपकी भाषा के आधार पर आपकी पेर्सनालिटी judge करली गयी है ।आपकी personality के आधार पर लोग आपको deal करने लगते हैं 
अगर आप किसी भी तौर तरीके में कमतर हो तो आपको आपकी परिस्थिति के अनुसार वो deal करेंगे behave करेंगे और late करंगे ।पहले वो अपने पुराने ग्राहक और बड़ी पार्टी वालों को डील करेंगे फिर आप तक आएंगे और हो सकता है कि आप बेवकूफों की तरह इंतज़ार ही करते रह जाएँ और टाइम निकलता जाये and आपका number आये ही नहीं।ये दशा है आज हमारे देश की जो इंसान को इस तरह से    महसूस कराती है साथ ही साथ उसमें कोई कमी है ऐसा एहसास दिलाती या कराती है।
हर एक भाषा का महत्व उसके एक्शन एरिया में होता है चाहे वो लोकल भाषा का लोकल एरिया हो ,या हिंदी भाषा का हिंदी भाषी एरिया या english का इंग्लिश माध्यम।
किसी भी चीज़ के सही -गलत के माईने कब बनते हैं जब उसको सामाजिक स्वीकृति मिलती है। समाज जिसके साथ होता है वही टिक पाता है किसी भी पर्सनालिटी को जज करने के लिए हम उसके अच्छे पहलु देखते हैं ,बुरे पहलु देखते हैं और फिर दोनों  पहलुओं को मर्ज करके उसकी पर्सनालिटी की इमेज दिमाग में बैठा लेते हैं वो इमेज ही उसकी इम्पोर्टेंस decide करती है कि कैसी भी परिस्थिति में किसे कैसे डील करना है। अगर आपका लहजा ,बात करने का तरीका सब बिलकुल परफेक्ट हो तो भाषा चाहे कोई भी हो और कोई न भी हो , कुछ फ़र्क़ नहीं पड़ता।जैसे प्यार की कोई भाषा नहीं होती है प्यार तो आँखों ही आँखों में हो जाता है एक इशारा ही काफी होता है पूरा मतलब समझने के लिए ,एक नज़र ही काफी होती है प्यार जताने के लिए। भाषा तो इशारों में भी होती है ये  communication का पार्ट है भाषा लिखी जाती है ,पढ़ी जाती है ,बोली जाती है ,सुनी जाती है ,express की जाती है आप अगर अपनी बात दूसरे को समझने में कामयाब होगये तो आपकी भाषा और आपका माध्यम एक सफल भाषा और एक सफल माध्यम का प्रतीक है। अगर भाषा को आप गलत तरीके से यूज़ कर रहे हो तो इसमें भाषा का कोई कसूर नहीं है इसमें कसूरवार खुद आप हो जो भाषा को माध्यम बनाकर गलत पर गलत किये जा रहे हो।
बेशक हिंदी एक सरल माध्यम है अपनी बात कहने का हिंदी जैसी भाषाओँ के भाषियों के समक्ष लेकिन इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता की हिंदी जटिलताओं से सरलता में बदल रही है सिर्फ एक माध्यम के तौर पर। आज लोग बड़े बड़े फंक्शन्स में ,film fare अवार्ड्स  में हिंदी और उसके कठिन शब्दों को मजाक के तौर में इस्तेमाल किया करते हैं और लोगों को एंटरटेन करते हैं।मैं  इस पर कोई कमेंट नहीं करूंगा कि ये सही या गलत और मैं आज इस बात से भी इंकार नहीं कर पाउँगा कि आज हमें हिंदी -उर्दू जैसी भाषाओँ की वैसी जरूरत नहीं रह गयी जैसी पहले हुआ करती थी। आज के मॉडर्न समाज में हिंदी की घटती लोकप्रियता ,हिंदी  कमतर इस्तेमाल ,मॉडर्न प्रचलन में हिंदी की नाममात्र की सहभागिता ,हिंदी को मॉडर्न समाज से पिछड़े समाज की तरफ धकेलती जा रही है क्योंकि पढ़ा लिखा समाज हिंदी की घटती लोकप्रियता के कारण ,हिंदी के इस्तेमाल को अपनी शान में गुस्ताखी समझता है और चाहते हुए भी इसके इस्तेमाल से खुद को दूर रखने लगता है।
english के प्रभाव को कभी काम नहीं आकां नहीं जा सकता और न ही उसको कोई बढ़ने से रोक सकता है। जैसे कोई भगवान को नहीं छोड़ता चाहे वो उसे जिस भी रूप में क्यों न अपनाये वैसे ही कोई भाषा को नहीं छोड़ सकता फिर चाहे वो भाषा से कैसे भी जुड़ा क्यों न हो। इन दोनों चीज़ों के तार दिल,दिमाग और आत्मा से जुड़े हैं जो हमें हमारे बचपन से लेकर हमारे आज तक हम सभी को विरासत में मिले हैं।
जरुरत है सब की पोजीशन के हिसाब से ,स्थान के  हिसाब से ,सिचुएशन की गंभीरता और कार्य की जटिलता देख कर भाषा का चुनाव कीजिये और अपनी बात सरल करने का उसे माध्यम बनाइये। नफरत किसी भी भाषा से मत कीजिये  और अगर लगता है  कोई भाषा कमतर है या फिर अच्छी नहीं है या आपके लायक नही है तो दो काम किये जा सकते हैं अगर हो सके तो उसे बेहतर बनाने का प्रयास कीजिये या फिर उसको समझने और उसके बारे में किसी भी जानकारी को अपनी जिंदगी  का हिस्सा मत बनने दीजिये बस जानिए की वो exists करती है आपको समझ नहीं आती है आपकी समझ के बाहर है तो किसी ऐसे व्यक्ति या ऑपरेटर ,ट्रांसलेटर,कनवर्टर से कांटेक्ट करिये जो आपको वो बात आपकी  समझा दे। its  too  easy .
कोई भी जानकारी जो सिर्फ आपकी भाषा की पकड़ की वजह से आप तक नहीं पहुँच पायी ,ऐसी सिचुएशन आपके लिए लाभप्रद भी हो सकती है और हानिकारक भी,its  depends on your situation एंड your destiny .
जैसे दिल के रिश्तों का मतलब ही जान-अनजान से है। बुझता और अनभिज्ञता भी बहुत से कारणों का स्वयं में एक हल है अगर जिंदगी का समस्या से वास्ता ही न पड़े तो जिंदगी में कैसी समस्या।
now a days english is our formal language and टूटी-फूटी english is our general language.और भाई पंजाबी तड़का जब लग जाये तो मजा हि आ जाता है पंजाबी मिक्स रॉक्स ,जरुरत बन गयी है आज की, इंग्लिश! ,पढाई-लिखाई ,मेट्रोज ,एयरलाइन्स,कोर्ट्स ,मॉल्स ,गेम्स,abroad ,इंटरनेट ,email ,mobiles ,रेलवे टिकट irctc इत्यादि। लगभग सभी जगह आज अंग्रेजी बहुत धड़ल्ले से /ज्यादा यूज़ हो रही है और आज के इस नए ज़माने में इसका महत्त्व भी बहुत बढ़ गया है या ये भी कह सकते हैं की हमारे हिंदी प्रधान समाज ने मॉडर्नाइजेशन के साथ साथ इसका महत्व इतना ज्यादा बढ़ा दिया है जिसे कम कर पाना लगभग नामुमकिन है। In case of English :
generally you are pretending to be qualified.you think it's a more powerful way of touching heart with no guilt like love.
अगर आज के नज़रिये से देखें तो प्यार  में शब्दों का भाव भी भाषा का एक रूप प्रदर्शित करता है जैसे कि ;
मैं आपसे प्यार करता हूँ। ……… डार्लिंग i love you .
क्या तरीका है क्या फीलिंग है सब बकवास ,ये एक नजरिया है जिससे इंसान तौलता है अपनी और आपकी जिंदगी के तराजू में ,वो  देखता है कि आप कितने एडवांस हो कितने रोमांटिक हो। किसी और के सामने आपके bf या gf को लेकर आप कभी मायूस तो होगे। ये लैंग्वेज का फ़र्क़ है जब इंसान सोचता है कि आप उसके लेवल के हो भी या नहीं। लैंग्वेज के इस्तमाल करने के तरीके की वजह से आज शब्दों का भाव ,प्यार का भाव ,जिंदगी , सोच  … सामाजिक मामले में कहीं हद तक लैंग्वेज choice and  interpretation ही  तय कर देती है। आज का समाज मानता है की हिंदी एक पुराना तरीका होगया है वेद,पुराण तक ही सीमित  रह गया है बाबा आदम के ज़माने की भाषा है ये ,इसका प्रयोग करके एडवांस लोगों की इज़्ज़त का भाव गिर जायेगा। उनकी शान में गुश्ताखी हो जाएगी। English is an advance language and the whole world is using it as mother tongue or international language. ये चलन में है ,इसका एक स्टेटस है ,बड़े लोग इसका इस्तेमाल करते हैं खुद को और बड़ा  लिए। ये सोच है आज की। ये बिलकुल गलत है लेकिन अफ़सोस यही सच है आज हिंदी कमजोरों की निशानी के तौर पर पहचानी जा  मन सम्मान सब हथेली पर लेकर चलते हैं ताकी जब जरुरत पड़े बड़ी आसानी से धो सकें।हिंदी और हिंदी भाषी की चुटकी ले सकें। जब कोई शुद्ध हिंदी बोलता है तब बहुत से  उसे घूर घूर कर   प्राणी आ गया ये ,कहाँ से बिलोंग करता है ये ,ये घटिया सोच रहती है अधिकतर की।
मैं हिंदी और अंग्रेजी दोनों में से किसी को भी गलत नहीं मानता हूँ मेरा मानना ये है कि समाज और दुनिया चलन को देखती है तथ्य नहीं। फैशन देखती है अपनाती है मूल भाव नहीं।
as a cool guy कोई बंदा  या बंदी आज की date में हिंदी को ही बस अपनाता है तो बहुत सी चीज़ें वो या तो खुद में कम पाता  है या फिर सामने वाला उसका बहुत छोटा आंकलन करता है वहीँ दूसरी ओर इंग्लिश के आस्पेक्ट में इंसान खुद में एक कॉन्फिडेंस महसूस करता है चाहे वो झूठा ही क्यों न हो। 
मैं इसको भाषा का कसूर नहीं मानता हूँ  लेकिन मैंने कई बार इंग्लिश को लोगों के झोठे सच का सहारा बनते हुए देखा है की झूठ बोलने के लिए किसी पर हावी होने के लिए कैसे ओग इंग्लिश का सहारा लेते हैं तक समाज उनको एक सभ्य की तरह डील करे ,चाहे वो जितनी भी अभद्रता क्यों न कर चुके हों। झूठ का सच के मुखोटे में लिपटा होना,झूठ को बड़ी सफाई से हक़ के साथ अमलीजामा पहनाना ,,बुराई हो ,अश्लीलता हो,अभद्रता हो या फिर बेबसी,ये सब कुछ सबके सामने बड़े सुन्दर तरीके से परोसने और सबसे जोर देकर मनवाने में लोग इंग्लिश का बहुत अच्छी तरह यूज़ करते हैं। 
मैं ये जनता हूँ कि ये सिर्फ मेरा वहम है इसमें इंग्लिश और हिंदी का या फिर और किसी चीज़ का कोई दोष नहीं है लेकिन यहाँ ये कहना मैं लाज़मी समझूंगा कि इंग्लिश को हमने जन्म नहीं दिया है , हमने केवल समझा और अपनाया है इसे  और शायद पूरी तरह अपना भी नहीं पाएं हैं हम इसे ,लेकिन हिंदी में हमारा और हमारे देश का जन्म हुआ है हम इसकी और ये हमारी पहचान है ,ये हमारी धरोहर है जब हम अपने देश से अलग थलग बाहर किसी देश में पड़े होते हैं तब हम इसके महत्व को शायद अच्छी तरह से समझ पाते हैं हिंदी को हमने जन्म दिया है ,इसे अपनाया नहीं है अब लगता है शायद इसे हम पूरी तरह जिन्दा भी नहीं रख पाये हैं क्यूंकि हम शायद अच्छी तरह समझते नहीं हैं कि  बात कहने के लिए  भाषा चाहिए ,माध्यम चाहिए और समझने वाले का समय और उसकी कद्र भी करनी आनी चाहिए। इसलिए आपको जो अच्छे से आता हो उसे दिल से कहो ,जरूरी नहीं है हिंदी! अंग्रेजी में कहो। लेकिन अपनी लैंग्वेज तो अपनी लैंग्वेज होती है इसका फ़र्क़ आपको विदेशों में दिखेगा, जब महीनों तब आपके कानों में हिंदी का एक वर्ड तक नहीं पड़ेगा ,तब आपको इसकी याद आएगी क्योंकि आपकी मदर टंग आपकी जरूरतों ,आपके समाज और आपके सम्मान की धरोहर होती है ,इस बात को कभी नहीं भूलना चाहिए। पर आज इस बात को भी सिरे से नकार नहीं सकते कि इंग्लिश आज हमारे दिल ओ दिमाग पर इस कदर हावी है , हम सोच कर भी उससे अलग नहीं हो सकते। हिंदी का भी यही हाल है।  हमारा दिल ,हमारा दिमाग हिंदी का आदी है सुनकर ,सोचकर और बोलकर,,,,चाहे कुछ भी करलो लेकिन उससे अलग ,उससे अछूते नहीं रह सकोगे। 
एक बात का ध्यान हमेशा रखना-   
चलन हमसे बनता है हम चलन से नहीं।  
फैशन हमसे बनता है हम फैशन से नहीं।
शुरुआत करो चीज़ों की खुद पर थोपो नहीं कभी। 
अपनाओ तभी चीज़ों को जब उसमे कुछ अपना सा लगे। 
बह जाओ उसी के साथ जब वो बहने को कहे। 
थम जाओ उसी के पास जब रुक -रुक कर वो चले। 
परवाह नहीं है भाषा की चाहे वो जो कुछ भी हो। 
परवाह तो बस समझ की है क्या पता वो ये समझती ही न हो। 

Sunday 10 May 2015

मेरे शब्द

if we are existing and suppose to be exiting :that's only possible due to presence of photon in the nature and our lives.
PHOTON makes the whole lives of the existing world: as we see ,as we feel,do,make fun and enjoyment and respond : each and every creativity of our lives are just because of photon.photo ही हमारी जिंदगी में सवेरा लेकर आया है सदियों से सदियों तक एक मात्र रौशनी की किरण फोटोन ही रहा है । इसी ने हमें अंधकार और उजाले में फ़र्क़ समझाया है । सदियों से यही एक मात्र कड़ी रही है जो हमारी ऊर्जा और हमारे भार  को संतुलित करे हुए है । इलेक्ट्रान हो या प्रोटोन ,एटम हो या फिर न्यूट्रॉन ,mass ,higgsboson  और एनर्जी सब इसी की उपज हैं तभी इन् सब को हम एक दुसरे मे  बदल सकते हैं । फोटोन जीवन की किरण है जो life को create करती है। 
इस संसार में सुगंध (गंध or  smell ) क्यों पायी जाती है इसकी existence  कैसे और किस कारण की वजह से है?
सुख और दुःख पर ही यह संसार क्यों टिका हुआ है ?आराम और कष्ट  तो इस शरीर के रूप हैं न की आत्मा के ,ये तो एक  feeling और अनुभव है जो हर इंसान और  जनजाति अपने जीवन में व्यतीत करती और संजोती है। इनका शरीर के अलावा आत्मा से क्या relation है मोक्ष से क्या relation है,परमात्मा और स्वर्ग  एवं नर्क से क्या relation है ।
सुख और दुःख ,स्वाद और संवाद के परे क्या होता है क्या हमें इससे जानने की जरूरत है हम क्या करेंगे इसे जानकर । हमें क्या मिल सकता है इसे जानकर ,……।`
obviously आप यही कहेंगे सुख-दुःख ,स्वाद-संवाद ,लेकिन यही मेरा प्रश्न है ।आखिर दुनिया किस चीज़ की तलाश में'है जो शायद उसे पता ही नहीं है या फिर वो इतनी मामूली है कि पता करके भी क्या होगा ,कोई फायदा नहीं है । आज की दुनिया की यही टेंडेंसी है फायदे के ऊपर उसे कुछ नहीं दिखता है long term  सोच की कमी है ।
अच्छा तो इसे ऐसे सोचो -        मरने के परिणाम में आपको क्या मिलेगा? ....  ………
यहाँ तो मिलेगा शब्द ही व्यर्थ है अनुभव करना शब्द भी गलत है ,लेकिन क्या ?????
ये तो मैं भी नहीं जानता और शायद कोई भी नहीं । मिलेगा शब्द का मतलब और वजूद दोनों ही इस मायावी दुनिया के साथ जुड़े हैं अगर कुछ है तो सिर्फ इसके अंदर है बाहर  कुछ भी नहीं है और जो बाहर है वो सबके बस के बाहर है अगर अपने मुद्दे पर वापस आकर फिर से सोचें तो आपको खुद महसूस होगा जैसे मरने के  बाद अगर आपके पास कुछ हुआ भी तो आप उसका करोगे क्या ,उसके होने या न होने का भी क्या मतलब रह जायेगा :उसके लिए क्या वजह होगी आपके पास ,न तो उस समय आपके पास आपका शरीर होगा न कोई फीलिंग :
आप उसे रखोगे कहाँ ,उसका आप करोगे क्या ,किससे बांटोगे किससे शेयर करोगे ,हमेशा बाँटने से शेयर करने से आप.....  क्यों किसी भी चीज़ का मतलब ,अर्थ किसी दुसरे से जरूर होता है फिर चाहे वो ज्ञान हो ,पैसा हो ,दुश्मन हो या फिर प्यार । अगर कोई और नहीं हमसे  सुख -दुःख बाँटने वाला ,समझौता करने वाला तो किसी भी बात का कोई महत्त्व और मतलब नहीं है वो सब सीमित और लिमिटेड है हमारे खुद के लिए और सबके लिए । लोग अगर ये भी कहें की शाबाशी मिलेगी ,शान और शौकत होगी पूर्वजों के सामने । ये सब कहने  में ही अच्छा लगता है मेरी मानें इससे कुछ भी नहीं होगा जो आप धरती पर रहकर पा सकते हो महसूस कर सकते हो अनुभव ले सकते हो शेयर कर सकते हो अर्थात बाँट सकते हो वो सब और कहीं नहीं कर सकते क्यूंकि आपकी आत्मा और दुनिया केवल आपके शरीर को पहचानती है आपको नहीं ।
मृत्युपर्यन्त शब्द और अर्थ सब व्यर्थ हैं कौन मिलेगा क्या मिलेगा किससे मिलेगा किसको मिलेगा क्यों मिलेगा और अगर मिलेगा  भी तो क्या होगा उसका क्या होगा उससे किसको क्या फ़र्क़ पड़ेगा आपको फ़र्क़ पड़ेगा कुछ या फिर किसी और को भी कुछ फ़र्क़ पड़ेगा ।
मेरा मानना  है मिलेगा !इस स्टेज और सिचुएशन (after death )में  है ये शब्द ही अर्थ हीन और बेमानी सा है ।

मैं कहता हूँ कष्ट  ही मिले सही लेकिन इस दुनिया में आपको कुछ तो मिलता  है इस दुनिया में आपकी उपस्थिति ही आपको एक बहुत बड़ा वरदान है इसे व्यर्थ मत जाने दो ।
व्यर्थ में जिंदगी और ज़िंदगियों को मत बर्बाद करो । इस हसीन  दुनिया को खूबसूरत बनाने की जितनी भी मुमकिन  कोशिश  कर सकते हो करो । सबसे पहले अपने अंदर की खूबसूरती को ढूंढो ,उसे पहचानो और उस खूबसूरती को अपने  से बाहर निकालो । सब कुछ अपने आप खूब सूरत हो जायेगा ।  दुनिया को देखो समझो महसूस करो ,फिर चाहे वो एक अच्छा या फिर बुरा सपना ही क्यों न हो । लेकिन ये तुम्हारी जिंदगी है तुम्हारा वरदान है ,यहाँ हार मत मानों क्यूंकि ज़िंदगी ही सब कुछ है अगर ज़िंदगी नहीं तो कुछ भी नहीं ।


समाज भगवान को पहचानने की और जानने की कोशिश  करता है जिसमे वो अपना तन,मन,धन,समय और जीवन साथ ही साथ जिंदगी के बहुत से पक्ष /पल दांव  पर लगा देता है उसे लालसा होती है चाहे वो किसी भी चीज़ की हो लालच (रावण )हो या फिर मोक्ष (विभीषण),दोनों ही  इक्षाएं किसी उद्देश्य के फलस्वरूप पैदा होती हैं अब कौन सा उचित है और कौन सा अनुचित ये तो काल समय चक्र और कुछ पैमाने ही बता सकते हैं ।
 विधाता के पास जाना ही लालसा का परिणाम है फिर चाहे वो कष्ट का प्रतिशोध हो या सुख की शुक्रवानी अर्थात शुक्रिया हो ,या फिर कुछ पाने की ,जीने और मरने की लालसा हो ।
इससे  तो अच्छा है कि खुद को पहचानो ,खुद के अंदर झांक के देखो क्यूंकि भगवान तो हम ही बनाते हैं और वो हमसे ही बनता है (जैसे इंसान से बच्चे का जन्म होता  है )वो  कहीं नहीं होता है । न ही वो हमारे अंदर होता है लेकिन जैसे जैसे हम अपने अंदर झांकते जाते हैं खुद में लीन होते जाते हैं खुद को समझते ,सुधारते  और संवारते जाते हैं वैसे वैसे हम उसके रूप में और वो हमारे रूप में, हमारे शरीर में, हमारी आत्मा में साकार होने लगते हैं । तब कहीं जाकर भगवन का मुझमे और मेरा मुझमे और उनमें जन्म होता है ,प्रवेश होता है । एक उत्पत्ति साकार होती है । खुद के लिए भी और उस समाज के लिए भी जिसने नाम दिया है चाहे वो मेरा हो या भगवान । खुद को समझो>>>>जानों >>>और  महसूस करो फिर अपनी नज़र दूसरों तक या कहीं और लेजाओ ।अपनी समझ का दायरा  जब आप चरम सीमा तक पहुंचा दोगे तब फिर  ....
इसी में मैं समझता हूँ मोक्ष है यही मार्ग है ।
लोग समझते हैं जिंदगी किसी न किसी की देन है जो माता -पिता खानदान और समाज से परे है उसका शुक्रिया करने की जरूरत है इसलिए लोग उसे भगवन मानकर उसे अपना ideal  बना लेते हैं । मंदिरों,पत्थरों, मूर्तियों,लेखों,पत्रों,चिन्हों,मस्जिदों ,तस्वीरों और न जाने कितने  तरह के रूपों में ढूंढना शुरू कर देते हैं । लेकिन मैं  कहता हूँ रुको !
बात तो मेरे अस्तित्व की चल रही है ये तो मुझसे ही शुरू होगा और मुझ पे ही खत्म ,तो मुझ से ही शुरू करो न ।
यहाँ वहां कहाँ खोज रहे हो और वैसे तो मिलना नहीं। …मिलना …।
और अगर मिला भी तो क्या करना है, क्या करोगे, कभी सोचा है! अगर मुझमे मिल गया तो कुछ सोचना भी जायज है क्यों कि  मेरा वजूद है ,मैं कम से कम  खुद को तो और खुद के बारे में तो जानता ही हूँ। चाहे जो भी चीज़ हो ,बात हो, अनुभव हो,feeling हो ,वाणी हो, सुगंध हो  मुझमे ही तो होगी --मुझसे ही तो होगी।
मैं जानूंगा लेकिन इसके लिए  मेरी आत्मा ही नहीं मेरा शरीर भी  साथ होना जरूरी है ये दुनिया और ये वातावरण भी जरूरी है वार्ना सब बिन मतलब सा है.।
आपको यह जानकर आश्चर्य होगा की मेरा हर एक कदम मुझसे कुछ मशवरा करता  /सलाह लेता सा प्रतीत होता है। मुझसे कुछ पूछता हुआ और प्रश्न करता हुआ सा प्रतीत होता है अंततः निर्णय आपका होता है।
वो जैसा भी हो उसका परिणाम जैसा भी हो ,जो ये परिस्थिति और अनुभव आप महसूस करते हो यही आपकी पहली सीढ़ी है जो आपको आपके खुदके ,आपकी आत्मा के दर्शन कराते हैं। ये आपके साथ हर पल हर क्षण रहता है इसी का संतुलन ही तो है सब कुछ!
हर इमारत की नीव ,हर रस्ते की सीढ़ी ,हर ताले की चाभी और शुरुआत या फिर अंतिम छोर आपकी बात का ,आपके निर्णय का, परिणाम का ,जिंदगी की /का।
मेरा मनना है दुनिया का बंधन भी यही है शुरुआत भी यही है और अंत भी यहीं है।

मेरे शब्द। …………………………………………। ओशो  

Wednesday 15 April 2015

I lv Science in my way1


science is a thought is an act and spirituality is its elaboration and expansion ,sometimes beyond limitations and sometimes taken as assumptions.if i'm spiritual then my life and my world is a big assumption and my existence in that portion may or may not be (possible).if i'm scientific then i'm a real object of the real world and my presence satisfies that the existence of everything including me.
eg- Dream
how can you define dream?
in science
in spirituality
is it real world with respect to you and with respect to others?
or it's imaginary ,totally imaginary or completely imaginary;
that's why i'm saying ,both are required and different and the only possible way to thing...to understand ....to memorise....to recognise....the atmosphere the environment ...chemistry of world and society,biography of nature and personalities,mutual understanding is the part that say _ if communication is on the basis of spirituality then it's beneficial and valuable,if it's in scientific facts and era's then communication is valuable to or fitted to that criteria ...if world provide us existance ,different possibilities,multiple symmetries and situations so we should always think over it ,thinking before and thinking beyond it.there are infinite possibilities in world so "jo mil jay lapak lo agar nahi lapka to bhi koi baat nahi jab achha mauka mile tab lapak lo lekin kisi bhi possibility ko samajhe bina jane mat do ,sabkuch samjho ,guno,prepare ho uske liye, usko apne anusar dhalo aur apne ko uske anusar dhalo ,uske advantages and disadvantages choose karo ,solve karne ke different possible ways nikalo,handle karna sikho ,manage karna sikho then- fir kisi ek se amal karna shuru karo aur ek ek karke aage badhte jao aur rasta clear karte jao".life is so easy,so simple.make it easy in your way because it's a gift of god and parents and those who are really attached with you.Give the wings to life then take off your ambitions ,your dreams at high.opportunities every time comes and goes ,never tense because of that ,~be positive n move on to other.complication are just the way of simplification of life as when u wanna listen music with earphone and pickout it from ur ryt pocket , suddenly u watch it's meshed up.so complicated. so u can simplify that type of problems easily by meshed out and resolve the mesh of earphone n enjoying music.That's not a big deal,so simple.Thats why i'm saying that after each n every complication ~life becomes so simple and easier.another eg like flying kite -the thread of kite is suddenly meshed and your excitement suddenly broke down.never gave up,resolve the mesh n enjoy the game.it's sounds good and fire in the belly,come on ,u can do it.just go through these word and then you are full of energy. Always try to start your start with a fresh start then start by simply kicking bike of life ...boom....

Sunday 11 January 2015

rang

आज समाज में कुछ ऐसे विषय हैं जिनपर बोलना लोगों को बहुत जल्दी अकर्षित करता है और उनका जमीर और आत्मा इस पर बात करने और वादविवाद करने की इज़ाज़त नहीं देता | क्या हैं ये विषये और इनका हमारी ज़िंदगी मे इतना महत्व और प्रभाव कैसे और क्यों है क्या ये विषये इतने महत्वपूर्ण हैं कि और ज़िंदगी के विषय इनके सामने फीके पड जातें हैं अगर ऐसा सही मे है तो जरूरी है कि इस पर अधिक से अधिक चर्चा की  जाये ताकी हम और हमारा समाज इनको ज्यादा और अच्छे रूप मे समझ सके और साथ हि साथ बिना किसी हिचक और विवाद के इन्हे सही ढंग से अपना सके | तभी कई माइनो मे हमारा जीवन सुंदर और सुरक्षित हो पायेगा और हम चीज़ों को सही माएने मे अलग नजारिये से देख सकेंगे | ये विषये बहुत महत्वपूर्ण है  जोकि इस प्रकार हैं 
प्यार
धर्म
सेक्स(जेंडर as गर्ल/बॉयज़ ,समाज मे लड़के और लड़की मे भेद  ,सरकार और समाज के द्वारा लड़के और लड़कियों को अलग अलग अधिकार कुछ उनके अनुकूल कुछ समाज के अनुकूल ,सामाजिक विचार धारा और  कुछ सरकार की सहूलियत के अनुसार और कानून के नियम पर आधारित ,लव और धोखा और समाजिक स्वीकृति ,आकर्षण और प्रभाव ,समाजिक दिखावा मानसिक दिखावा और इगो ,सही उम्र ,सही साथी ,सही समझ और सही समय का अनुमान  और साथ हि साथ लोगों के प्रति और लोगों की इसके प्रति सही प्रतिक्रिया बहुत महत्वपूर्ण है )
लोकतंत्र एवं संविधान (कोई भी देश हो उसके कुछ नियम कायदे होते हैं जॉ वहाँ रहने वाले देश वशियों के अनुकूल और उनकी जरूरतों के अनुसार होते हैं जिसका मकसद सम्पूर्ण प्रणाली को सूचारू रूप से सबके हितों को साथ मे लेते हुए चलाना होता है जो सबके लिये सही है उसको गलत होते हुए भी सही का दर्ज़ा देना इसकी परिपक्वता का प्रतीक है लेकिन ये भी ध्यान मे रखा जता है की सभी समान हैं और सभी को समान अधिकार पाने का हक है जिसके लिये समय -समय पर कानून मे बदलाव जरूरी है जो केवाल व्यक्ति विशेष के हित मे ना होकर बल्की सम्पूर्ण समाज़ के हित मे हो)
कलर्स यानी रंग : रंगों का भी हमारी जिंदगी और दुनिया मे बहुत महत्व है रंग और चिन्ह प्रतीक हैं हमारी बातों के और भरोसे का ,रंग दर्पण है जो किसी मकसद के फलस्वरूप अलग अलग जगह और स्थानो पर अलग अलग रूप मे प्रयोग किये जाते हैं जब वो देश के झंडे मे होते हैं तो देश की नीव एवं उपलब्धियों के प्रतीक होते हैं जब वो ट्रेफिक लाइट मे या किसी रोशनी के रूप मे होते हैं तो किसी मार्ग मे दिशा निर्देशन के सूचक होते हैं जब वो फूलों मे होते हैं तो उनकी पहचान बनते हैं और उनकी सुंदरता के प्रतीक होते हैं जब वो वस्त्रों मे होते हैं तो वो पहनावा और प्रतिष्ठा के सूचक एवं व्यक्तिविशेष के व्यक्तित्व की पहचान बनते हैं दुनिया को रंगों मे रंगना एक प्राकृतिक हैं |
 कागज मे रंगों का महत्व तो जितना बेहतर एक चित्रकार बता सकता है उतना और कोई नही ,हम और आप तो मात्र कल्पना ही कर सकते हैं वो तो रंगों से ज़िंदीगियों को काग़ज़ मे उतारता  है
भाव भंगिमाओं को काग़ज़ मे उतारता है प्रेम और दर्द को वो कागज मे ढलता है वैसे तो हर रंग का एक अलग मतलब और महत्व होता है जो उसके उपयोग ,जगह और वातावरण पर निर्भर करता है कि कौन कहाँ और किस जगह किस मकसद के लिए क्या समझने के लिए उसका उपयोग कर रहा है जैसे पानी जिस बर्तन मे होता है उसका आकर ले लेता है वैसे रंग जिस तरह जिंदगी से और हम और आप से जुड़ा होता है ये उस  रूप मे ढल जाता है जिस जगह उसका उपयोग जिस सूचक के रूप मे किया जाता है वो उस रूप मे ढल जाता है और उसकी पहचान बनता है
लाल रंग जब वो शरीर से  बाहर आता है तो खून ,बलिदान और हिंसा का प्रतीक बनता है,जब उससे दिल के रूप मे दर्शाया जाता है तो वो प्यार,स्नेह ,भरोसे ,विश्वास और दर्द का प्रतीक बनता है ,जब वो पुष्प  मे होता है तो उसकी सुंदरता ,आकर्षण,सुगंध,प्रेम,उसके महत्व का सूचक और उसके प्रयोग और उसके नाम और धर्म मे उसकी जगह और साथ ही साथ उसकी पहचान बनता है उसका आकर उसका रूप उसका चटकीला या गहरा रंग किसी भी फल या फूल की पहचान होता है और साथ ही साथ ये सतर्कता भी देता है कि किसी का रंग रूप उसके स्वाभाव का प्रतीक है दुनिया और लोगों को उसके हिसाब से सावधानी बरतनी चाहिए, ज़रूरी नही किसी के रंग रूप के अनुसार उसकी पहचान का अनुमान हमेशा सही हो लेकिन उसके व्यवहार से सतर्क रहना समझदारी का प्रतीक है कि कौन कब अपने ही रंग मे दूसरों को ढाल लेता है जैसे ज़्यादा सुंदर और चटकीला रंग पुष्प और फलों के ज़्यादा ज़हरीले होने का प्रतीक है वैसे ही संसार की सुन्दर! चीज़ें समाज के ज़हर से बचने के लिए थोड़े कोम्प्लिकेटेड  हो जाती  हैं क्यूँ आकर्षक वस्तुओं पर हर किसी की नज़र जाती है लेकिन उसके प्रभाव से रूबरू  होकर ज़ालिम दुनिया अपनी दिशा बदल लेती है और उसकी सुंदरता का बचाव होता है यही प्रकृति का दस्तूर है कि वो अपनी सुंदरता को बरकरार रखती है और अपनी बनाई हर चीज़ को कुछ न कुछ अलग ज़रूर देती है जो उसकी दूसरों से अलग पहचान देती है और साथ ही साथ उसको खुदकी दूसरों से सुरक्षा और आत्मनिर्भरता की ताक़त दी.
लाल और केसरिया रंग जो हमारे देश के झंडे मे है वो बलिदान और हिंदुत्व का प्रतीक है केसरिया और भगवा ये रंग और पहनावा समान दिखने वाले और समानता के सुचक हैं जैसे साधु ,सन्यासी ,राष्ट्रिय स्वयं सेवक संघ इंन सब का पहनावा खादी ,केसरिया या फिर पीला वस्त्र है जो सूर्य जैसे तेज और सौर्य को, महात्मा और महापुरषों के बलिदान से पैदा शक्ति के प्रभाव को ,जितेंद्रा की आँखों के तेज को और आम इंसान की बुनियाद और उसके महत्व को और उसके देश मे उसका क्या महत्व है और देश के प्रति उसका क्या कर्तव्य है और दुनिया मे उसके और उसके देश के वज़ूद का कारण बनता है, यह रंग|
हरा रंग शांति का ,हरियाली का,चैन का ,कृषि  और किसान से संबंधित हर लोगो का सुचक है
यही रंग जब एक साथ होते हैं तो एकता का प्रतीक बनते हैं और अलग अलग पहचान और पथ प्रदर्शित करते है अलग अलग महत्व/मकसद को जन्म देते हैं और अलग अलग कार्य  का कारण बनते हैं जब मैं इंद्रधनुष के सात रंग देखता हूँ तो सोचता हूँ की क्या कारण हो सकता है इनका ,क्या प्रतीक हो सकता है इनका, कभी सोचता हूँ की ये सतरंगी रंग अपने महत्व के अनुसार पंक्तियो मे लगे हैं ,या कभी ये कि ये अंकों का भ्रम मात्र हैं जो सिर्फ़ श्वेत  रंग का अपवर्तन और परावर्तन मात्र है ,कभी लगता है कि बरसात का प्रतीक है तो कभी सुंदरता का ,कभी लगता है की मौसम साफ होने का सूचक है तो कभी कुद्रत का करिश्मा तो कभी रंगों का मेल लगता है तो कभी इंसानी सोच की इंसान किसी भी चीज़ को किसी भी बात को कितना महत्व दे देता है| ये सिर्फ़ थोड़ी देर का नज़ारा मात्र है जिसकी उत्पत्ति करना और जिसका गायब और समाप्त होना दोनो ही इंसान के बस मे नही है जो केवल कुद्रत के वजूद को दर्शाता है जब बरसात का मौसम होता है खूब पानी बरसता है फिर मौसम साफ होता है इंद्रधनुष निकलता है हल्का हल्का पानी ,हल्की और थोड़ी धूप, जिसके साथ इंद्रधनुष का नज़ारा मौसम को सुहाना कर देता है ये छोटा सा थोड़ा सा नज़ारा मन को शांत कर सारे तनावों को हल्का कर देता है

जब एक रंग दूसरे रंग मे मिलता है तो दोनों का वज़ूद मिलकर एक नया वज़ूद बनता है फिर वापस उनको एक दोसरे से अलग करना मुश्किल  हो जाता है उनकी पुरानी पहचान और दोनों का अलग अलग अस्तित्व सब कुछ आपस मे मिलकर एक नवीन जीवन या नये अस्तित्व मे बदल जाता है जब तक उसका वजूद  जिंदा रहता है तब तक मिलन की पहचान रहती है मिलन जितना गहरा होता है वज़ूद भी उतना निखर कर आता है फिर उन्हे एक दूसरे से अलग नही किया जा सकता है कभीनही  जब ढेर सारे रंगों को आपस मे एक निश्चित अनुपात मे मिलाया जाता है तो एक नया रंग  बनता है जो उन सभी के मिश्रण  नयी पहचान को जन्म देता है और जब सभी रंगों को मिलाकर एक कागज मे उतरा जाता है तो कागज को एक नयी पहचान मिलती है जब रंगों के अलग अलग अनुपात से अलग अलग रूप से कागज पर कुछ लिखा और चित्रित किया जाता है तो कागज अलग अलग रंगों से रंगीन होकर अलग अलग पहचान को जन्म देता है और निजीव  मे जीवन की किरण के साथ कुछ बोलता सा नज़र आता है कुछ कहता सा कुछ समझाता  हुआ कुछ बात करता हुआ प्रतीत होता है