Monday 26 September 2016

वाह ताज़

ताज होता सर पर तो मैं ताजमहल बनवा देता।
लाइन में खड़ा कर मजदूरों के हाथ मैं कटवा देता।
झिझकता मैं पल भर को न, इस कृत्य को करने से।
खून और बर्बरता की इस कहानी को मैं प्यार की निशानी बना देता
नज्ल लिख दूँ या फिर अफ़साने पढ़ लूँ।
खून की इस मुहब्बत में कुछ सफ़ेद चमक दूँ।
यूँ तो कहते तो बहुत होंगे कि हर चमकता पत्थर सोना नहीं होता।
पर ये सफ़ेद पत्थर भी कुछ कम नही हाँ जरूर ये सोना नहीं पर उससे कुछ कम भी नहीं।
लाल रंग चढ़कर भी देखो कितना सफ़ेद है,
दफ़न हैं कब्रें इसमें पर महकता बहुत तेज है।
वैसे तो यह बेइंतहां मुहब्बत की निशानी है
औरों की जबाँ पर , दिल के कोनों में बसे प्यार की कहानी है।
चाहे लग गए हों कितने साल कितने महीने बनने में इसको।
बह गयी हो दौलत , कट गए हों कितने हाँथ इसमें,
दोबारा इसजैसा न बनने देने को।
याद में बनवाया मुमताज की यह ताज शाहजहाँ ने।
नजरअंदाज नजरबन्द कर दिया उसके खुद के बेटे औरंगजेब ने इस ताज में ही।

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