Saturday, 15 February 2020
Kuch to dekha
समय से हकीकत तक
Saturday, 18 January 2020
Tuesday, 30 April 2019
रूठना
रूठा हूँ मैं खुदसे न जाने क्यों।
खुदको ये न जाने क्यों न समझा पाया।
रूठता क्या कोई है अपनों से।
मैं भी क्यों ये समझ न पाया।
दिल की कुछ इन बारीकियों में।
क्या लिखा था कुछ समझ न आया।
गहराइयों में उतर कर उन बारीकियों की।
बहुत खोजा मैंने पर मुझे कुछ मिल न पाया।
Monday, 26 February 2018
वो
रुक जाए हर कोशिश जहाँ।
रूह से क्या मिल सकेगी , वो।
धड़कनों से भी तेज धडक्कर।
क्या सांस मेरी बन सकेगी ,वो।
समझकर भी अनजान बनती है क्यों?
अगर मैं कुछ कहूँ तो क्या समझ पाएगी ,वो।
रोज उसकी याद में तड़पा हूँ जैसे मैं।
क्या मेरे एहसास को महसूस कर पायेगी ,वो।
वैसे तो मैं उसका कोई नहीं लगता।
लेकिन हमारा दिल जानता है एकदूसरे को।
करीब होकर एक दूसरे के ,
महसूस कराता है धड़कनों को।
मुलाकात जब मुकम्मल न हो
फिर दर्द उठता है जहन में क्यों?
पास होकर भी कुछ न कह सकें जब।
दर्द फिर भी दिल में छिपकर रोता है क्यों?
समझ नहीं आता क्या है ये रिश्ता?
जो अनजान पहचान को अनजान नहीं समझता।
जिंदगी के कुछ रंग इसमें मिलाकर।
खुद की पहचान से भी गहरा कर देता है उसको।
इश्क़ के पन्नो में लिखकर नाम मेरा वो।
कुछ रंग मुझ रंग में मिला दे।
दो बात फिर कहे मुझसे वो, और
इस दो में मुझे भी शामिल करा दे।
Monday, 8 January 2018
मैं कौन हूँ१
मैं कोई शक्ल नहीं ना मैं कोई नाम हूँ।
मैं एक सोच हूँ जो मेरी भावनाओं से व्यक्त होती है।
मैं एक बदलता स्वरूप हूँ जो वक्त के थपेड़ों को साथ लेकर सिमटता जाता है जो सोच ,समय और बदलाव के साथ चलता चला जाता है।
Sunday, 7 January 2018
नीर हो रक्त जब फिर
बह रहा था नीर जिसमें,
खून उसका क्या खौलेगा।
स्व के अपमान में भी।
थोड़ा तो वह रो लेगा।
बह गया जो रक्त उसमें भी
नीर भी अब रक्त हो ले गा।
दौड़ गया अगर नसों में वो
तो फिर स्व को खुद से तौलेगा।