समय के उन पहियों ने जब मुड़कर
लकीर जो दिल पर नसों से खींच दी है
जकड़ लिया जब नस ने दिल को
ऐसा लगा जैसे कि
डोर सांस की किसी ने खींच दी है।
सांस भी अब लगी चलने आहिस्ता,
जैसे डोर पतंग की किसी ने खीच ली है।
सांस छोड़ने पर भी लगे अब ऐसा,
जैसे अभी तो केवल, ढील डोर ने दी है।
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