सिमटते हुए वक्त को किसने देखा है
जिंदगी में पड़ी सिलवटों को किसने देखा है
मुरझाए हुए पन्नों में बंद लिखावट को किसने देखा है
आसमां में टूटे टुकड़े हुए तारों को किसने देखा है
सोच ये है कि जिंदगी आंखों से दिल तक जाती है
दिल में ठहरकर जिंदगी सांसों में बह जाती है
रुकती है और कहती है थोड़ा रुको मैं अभी आती है
सांस बनकर आयी थी और सांस बनकर चली जाती है
रात भी देखी और दिन भी देखा
आती जाती सांसों ने हर बदलता मौसम भी देखा।
किसी ने आंखों से देखा किसी ने मन से देखा
हमने तो जिंदगी को हर एक जीवन से देखा
उजड़े हुए जंगल में खिलता कमल देखा।
जले हुए की राख में नया जीवन देखा।
सूरज की रोशनी देखी चांद का नूर भी देखा।
खुले आसमां से बारिश की बूंद को देखा।
उन बारिश की बूंदों में एक बदलता सरोवर देखा।
ढूंढा खूब ख़ुदको पर खुदसे ख़ुदको कभी कहीं न देखा।
मैने मेरे आसमां को जमीं पर उतरते देखा।
No comments:
Post a Comment