रुक जाए हर कोशिश जहाँ।
रूह से क्या मिल सकेगी , वो।
धड़कनों से भी तेज धडक्कर।
क्या सांस मेरी बन सकेगी ,वो।
समझकर भी अनजान बनती है क्यों?
अगर मैं कुछ कहूँ तो क्या समझ पाएगी ,वो।
रोज उसकी याद में तड़पा हूँ जैसे मैं।
क्या मेरे एहसास को महसूस कर पायेगी ,वो।
वैसे तो मैं उसका कोई नहीं लगता।
लेकिन हमारा दिल जानता है एकदूसरे को।
करीब होकर एक दूसरे के ,
महसूस कराता है धड़कनों को।
मुलाकात जब मुकम्मल न हो
फिर दर्द उठता है जहन में क्यों?
पास होकर भी कुछ न कह सकें जब।
दर्द फिर भी दिल में छिपकर रोता है क्यों?
समझ नहीं आता क्या है ये रिश्ता?
जो अनजान पहचान को अनजान नहीं समझता।
जिंदगी के कुछ रंग इसमें मिलाकर।
खुद की पहचान से भी गहरा कर देता है उसको।
इश्क़ के पन्नो में लिखकर नाम मेरा वो।
कुछ रंग मुझ रंग में मिला दे।
दो बात फिर कहे मुझसे वो, और
इस दो में मुझे भी शामिल करा दे।
Monday, 26 February 2018
वो
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