"कुछ तो देखा"
सिमटते हुए वक्त को,
किसने देखा है।
जिंदगी में पड़ी,
सिलवटों को...
किसने देखा है।
मुरझाए हुए पन्नों में बंद,
लिखावट को...
किसने देखा है।
आसमां में टूटे,
टुकड़े हुए तारों को,
किसने देखा है।
सोच ये है कि,
जिंदगी आंखों से....
दिल तक जाती है।
दिल में ठहरकर,
जिंदगी सांसों में...
बह जाती है।
रुकती है और कहती है,
थोड़ा रुको...
वो भी अभी आती है।
सांस बनकर आयी थी,
और सांस बनकर,
चली जाती है।
रात भी देखी,
और दिन भी देखा;
आती जाती सांसों ने,
हर बदलता...
मौसम भी देखा।
किसी ने आंखों से देखा,
किसी ने मन से देखा
हमने तो जिंदगी के,
हर पल में....
अपनापन देखा
उजड़े हुए जंगल में,
खिलता हुआ ...
उपवन देखा।
जले हुए की राख में
इक नया जीवन देखा।
सूरज की रोशनी देखी,
चांद का जगमग...
नूर भी देखा।
खुले आसमां से,
बारिश की एक...
बूंद को देखा।
उन बारिश की बूंदों में,
एक बदलता ....
सरोवर देखा।
ढूंढा खूब ख़ुद को,
पर खुद से ख़ुद को...
कभी..कहीं नहीं देखा।
मैंनेे मेरे आसमां को,
जमीं पर उतरते देखा।
-ओशो गुप्ता_