Sunday, 25 September 2016

रिश्ते वादे

रिश्ता बदल दिया है मैंने ,
निभाना नहीं है शायद मुझको।
रास्ता नहीं बदलूंगा अब,
कुछ और निभाने के लिए।
रस्मे बदल गईं
थोड़ी कड़वाहट आने पर
पर मैं नहीं बदला ,
यूँ तो टस से मस भी न हुआ,
मुझसे जुड़ा सब कुछ भी बदल जाने पर।

इतनी बेरुख़ी भी कम न थी मेरी
मुझसे मेरी पहचान तक छुपाने में।
जो रेत उडी थी रेगिस्तान में,
काफी थी मुझको मैं याद दिलाने में।

तकल्लुफ भी किया मैंने
यूँ वादे भी किये मैंने
पर कौन था मुझमें जो बतादे कि
ये सब किया
किससे मैंने!
ढूंढने निकला था जो
मैं मुझमें,
जाने कहाँ पहुँच गया मैं!
राह ढूंढता ही रह गया
ज़िन्दगी के इस मैखाने में।
खो गया हर वज़ूद मैं,
जाने और अनजाने में।
मिला भी तो कहाँ
फिर से उस फ़साने में।
बदल गया न जाने कैसे
मैं मुझको समझाने में।

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