मैं हूँ मैं करता हूँ मैं कर सकता हूँ होना या न होना मुझपर निर्भर है ये मुझसे है अगर मैं कुछ करूँगा ही नही तो कुछ होगा ही नहीं या यूँ कहूँ होना या न होना मेरे करने से है और मुझसे भी है।तो जब मैं जन्म के पहले और मृत्युपर्यंत होता या नहीं होता हूँ तब मैं करता की भूमिका में नहीं होता होना इसलिए ऐसे समय होना या न होना कोई माईने ही नहीं है कुछ मतलब ही नहीं बनता इसका।इसलिए किसी चीज का होना या न होना और उसका अस्तित्व जन्म के पूर्व और मृत्युपर्यंत होता ही नही क्योंकि ये सोच ही बदल जाती है वहां हमारी सोच लागू नहीं होती हमारी समझ काम नहीं आती है सबकुछ शांत सा होता है समझ दिल धड़कन तो होती ही नहीं। एहसास भी नही होता शायद ,बस रह जाता है तो सिर्फ वजूद ,आत्मा और परमात्मा का वजूद और सब एक सीध में हो जाता है कोई complication नही कोई झंझट नहीं ,दुःख पीड़ा नहीं बस मैं होता है और मैं हो जाता है सबकुछ । ये भी की सबकुछ की भी परिभाषा बदल जाती है माईने बदल जाते हैं सबकुछ!अब सबकुछ नहीं रह जाता वो भी शरीर से पहले और शरीर के बाद मिटटी हो जाता है सांस हो जाता है हवा हो जाता है पानी हो जाता है जलकर आसमां होजाता है सिर्फ उसकी धूल रह जाती है यहाँ।जो यादें और पलों का घेरा बना लेती हैं हमारी जिंदगियों में।
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