Friday, 26 February 2016

साया

मैं कोई परिछायीं नहीं हूँ कि जो सूरज का रुख बदलते ही अपनी पहचान बदल ले।
मैं एक शख्शियत हूँ जो दिल के बदलावों में बदलाव ला सकता है मन के बदलावों में नहीं।
जो ऐसे नहीं बहेगा जैसे पानी मिट्टी में बह जाता है। और न ही ऐसे रुकेगा जैसे जल सरोवर में रुक जाता है।इसे तो बहना है नदी की तरह जो छल-छल करती हुयी अपनी मंज़िल को निकल जाती है, जो रोके से भी जल्दी रूकती नहीं है कहीं न कहीं से अपना रास्ता बना ही लेती है।इसे बढ़ना है उस आग की तरह जो जंगल में लग जाती है।रहना है उस रेगिस्तान की तरह जिसकी रेत बड़ी से बड़ी चीज़ उड़ा ले जाती है और वज़ूद तक मिटा जाती है। बरसना है उस बादल की तरह जिसकी वर्षा सुख दुःख का एहसास दिलाती है।जीना है उस इंसान की तरह जिसके मन मंदिर में सिर्फ प्यार , हमदर्दी और इंसानियत पायी जाती है।

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