मेरा मानना है कि ब्रह्माण्ड भी एक इंसान है जो हमें उस नज़रिये से देखता है जैसे हम चींटी जैसी छोटी प्रजातियों or माइक्रोस्कोपिक जनजातियों को देखते हैं।एक छोटी प्रजाति जिसके केवल समूह के बारे में हम जानते हैं ।जिसका नाम ,व्यवहार ,फायदा ,नुक्सान,वंसज,विशेषताएं हम जानते हैं या जानने की कोशिश में लगे रहते हैं।हम उसकी एकता जानते हैं उसका आचरण जानते हैं लेकिन न तो हम उसकी feelings जानते हैं ,न उनकी बोली जानते हैं समझने की कोशिश कर सकते हैं लेकिन जान नहीं सके और न हि हम उनकी सोच जान सकते हैं और समझ सकते हैं।शायद ब्रह्माण्ड में हम चीटियों से भी छोटे हों या फिर इतने छोटे कि शायद उसको हमारे बारे में इस मानव जाति के बारे में मालूम ही न हो।वो शायद हमारी हि तरह जनजातियां और प्रजातियां खोजने में लगा हो याफिर उसके लेवल पर इस तरह की कोई चीज़ ही नही होती हो जिससे उसे इस तरफ सोचने का मौका मिले।उसकी सोच ही different हो जहाँ जीना-मरना,जीवन-जनजाति,सोच-दिमाग,व्यव्हार-नेचर ये सब किसी भी माईने में न हों।क्या पता उनका काम इस सब के परे किन्हीं और मूलभूत आवश्यकताओं पर टिका हो जिसका हमारी दुनिया की किसी भी चीज़ से कोई लेना देना न हो।वो इस सब से बहुत बड़ा हो जिसको हमारी सोच भी न सोच सकती हो।
जैसे बहती हुई नदी को ये नहीं मालूम होता कि उसके साथ कंकड़ भी बह रहे हैं।दो कंकड़ आपस में बहस कर रहे होते है -एक बोलता है कि मैं इस नदी को रोक के दिखाऊंगा तो दूसरा कहता है देखता हूँ मैं तू कैसे रोकता है नदी को और दूसरी तरफ बहती नदी है जिसे ये भी नहीं पता कि उसमे दो कंकड़ हैं जो उसको लेकर लड़ रहे हैं उनकी बातें or conversation पता होना तो बहुत दूर की बात है ,उसका काम है बहना और वो बहती जा रही है, ऐसी ही हमारी स्थिति है ब्रम्हांड में ।
जो चीज़ हमें regular और रूटीन में दिखतीं हैं हमें वो सारी दुनिया की चीजें systematic और symmetric दिखती हैं लेकिन हमें पता ही नहीं होता कि चीजें इतनी छोटी या इतनी बड़ी भी हो सकती हैं। जिसके systematic होने का हम अनुमान भी नहीं लगा सकते थे, उनके माईने उसके आकर ,उसकी position,shape की बदौलत हमारी उम्मीद से बिलकुल हट कर हो जाती है।जब तक पृथ्वी को बाहर से नहीं देखा गया तब तक कोई मानने को भी तय्यियार नहीं था कि पृथ्वी गोल और गेंदाकार है। सब उसको चपटा ही समझते थे। बिलकुल ऐसा ही आज है जब तक फुल प्रूफ न दो तो कोई बात मानने को तय्यियार ही नही होता है । सारी चीज़ें बहुत छोटे और बहुत बड़े लेवल पर हमें सिमेट्रिक और सिस्टेमेटिक दिखती हैं शायद वो इतनी उबड़-खाबड़ हों लेकिन उनकी speed उनकी बनावट हमारी आँखों को धोखा सा देती हैं।जैसे-running fan ,spinning earth seemed to be circular or spherical because of their speed and microscopic corner of table and telescopic surface of the sun by shape seems same.I think it's a natural gift given to us given by nature.how we can see,think,imagine speed ,shapes,colors,feelings.?
जैसे बहती हुई नदी को ये नहीं मालूम होता कि उसके साथ कंकड़ भी बह रहे हैं।दो कंकड़ आपस में बहस कर रहे होते है -एक बोलता है कि मैं इस नदी को रोक के दिखाऊंगा तो दूसरा कहता है देखता हूँ मैं तू कैसे रोकता है नदी को और दूसरी तरफ बहती नदी है जिसे ये भी नहीं पता कि उसमे दो कंकड़ हैं जो उसको लेकर लड़ रहे हैं उनकी बातें or conversation पता होना तो बहुत दूर की बात है ,उसका काम है बहना और वो बहती जा रही है, ऐसी ही हमारी स्थिति है ब्रम्हांड में ।
जो चीज़ हमें regular और रूटीन में दिखतीं हैं हमें वो सारी दुनिया की चीजें systematic और symmetric दिखती हैं लेकिन हमें पता ही नहीं होता कि चीजें इतनी छोटी या इतनी बड़ी भी हो सकती हैं। जिसके systematic होने का हम अनुमान भी नहीं लगा सकते थे, उनके माईने उसके आकर ,उसकी position,shape की बदौलत हमारी उम्मीद से बिलकुल हट कर हो जाती है।जब तक पृथ्वी को बाहर से नहीं देखा गया तब तक कोई मानने को भी तय्यियार नहीं था कि पृथ्वी गोल और गेंदाकार है। सब उसको चपटा ही समझते थे। बिलकुल ऐसा ही आज है जब तक फुल प्रूफ न दो तो कोई बात मानने को तय्यियार ही नही होता है । सारी चीज़ें बहुत छोटे और बहुत बड़े लेवल पर हमें सिमेट्रिक और सिस्टेमेटिक दिखती हैं शायद वो इतनी उबड़-खाबड़ हों लेकिन उनकी speed उनकी बनावट हमारी आँखों को धोखा सा देती हैं।जैसे-running fan ,spinning earth seemed to be circular or spherical because of their speed and microscopic corner of table and telescopic surface of the sun by shape seems same.I think it's a natural gift given to us given by nature.how we can see,think,imagine speed ,shapes,colors,feelings.?
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