Wednesday, 3 June 2015

Why we need success

हमारा डर हमारा control है दुनिया में जीने का ,survive करने का  और साथ ही साथ डर हमारा बोध है conscious level है जो हमारी सोच की उपज और जिंदगी की एक बेहतर दिशा है हमें पता होना चाहिए की कहाँ हमें डरने की जरूरत है और कहाँ हिम्मत दिखाने की। डरना हमेशा उस चीज़ से चाहिए जिसके बारे में हम कुछ भी नहीं जानते हैं जो हमसे और हम जिससे पूरी तरह अनजान हों।   
हम छिपकली को भगाते हैं अपने कमरे से ,क्योंकि हम डरते हैं उससे या उसकी activity से ,उसके natural nature&behavior से।
रास्ते में भौंकते हुए कुत्तों को पत्थर मारकर भगाते हैं या बिना देखे डर को काबू में करके धड़कन normal रखकर ,mind normal and quite रखकर आराम से वहां से निकल जाते हैं । हम जानवरों को डराते हैं क्योंकि हम उनसे डरते हैं और अपने डर से निजात पाने के लिए या फिर उस situation को overcome  करने के लिए या हर बार आपके साथ या बार-बार किसी और के साथ कोई घटना न हो जाये ,इसके लिए जानवरों को डर का एक सबक देने की कोशिश करते हैं।(यहाँ मेरा मकसद जानवरों को नुक्सान पहुँचाने से बिलकुल भी नहीं है मैं यहाँ एक general thinking और एक आम  इंसानी सोच को represent कर रहा हूँ कि जिससे हमें डर लगता है उस डर से निजात पाने के लिए हम उसे डराने की कोशिश करते हैं कदम -कदम पर गिराने की कोशिश करते हैं ,हर जगह जहाँ भी मौका मिलता है उसे बदनाम करने की कोशिश करते हैं उससे दुश्मनी बसा लेते हैं अपने दिल में।)
ठीक ऐसा ही इंसानों के साथ होता है इंसान हमेशा दूसरे इंसान से डरता है ,insecure महसूस करता है ,ईर्ष्या करता है या comptite करने की कोशिश में लगा रहता है।कोई भी नया idea उसको आता है जल्दी share करना नहीँ चाहता । डर! डर भरोसे में कमीं आज के दौर में आज के समय।ये सिर्फ इंसानी सोच में लंगड़ापन /अपंगता है और कुछ नहीं।
डर क्या है ?हम तो सांप से भी डरते हैं शेर से भी डरते हैं बिच्छु से भी डरते हैं चींटी से भी डरते हैं और यहाँ तक भी हम अपने आप से भी डरते हैं और जब भी हमें डर लगता है तो हम frustrated हो जाते हैं और फिर दूसरों पर अपना frustration निकालने की कोशिश करते हैं तरीके बहुत सारे होते हैं लेकिन सबका मकसद और result एक ही होता है।डर!डर पैदा करना।इसको पैदा करने के नए नए तरीके इज़ात करना।आतंक भी डर के बलबूते पनपता और फैलता है।
हिम्मत एक ऐसी ताकत है जो हमारे डर को काबू में रखती है और साथ ही साथ हमारे एहसास और potentials में बदलाव करती है जिससे हम चीज़ों से useto हो जाते हैं और हमारा डर  खत्म होता जाता है। यही समय के साथ हमारा experience बन जाता है और इसी एक्सपीरियंस को साथ में लेकर हम दूसरों के डर  को काबू में करने या खत्म करने में जुट जाते हैं जो समय के साथ -२ दूसरों का एक्सपीरियंस बनता जाता है।
आज इंसान जब भी success की पहली सीढ़ी चढ़ता है उसका डर कम होता जाता है जिसे वो पहले अपना डर समझता था उसमे गिरावट आने लगती है और साथ हि साथ उसके नए डर शुरू भी होते जाते है ।(security,money,bank balance,shares ,family )

Tuesday, 2 June 2015

Universe मेरा नजरिया मेरी खोज

मेरा मानना है कि ब्रह्माण्ड भी एक इंसान है जो हमें उस नज़रिये से देखता है जैसे हम चींटी जैसी छोटी प्रजातियों or माइक्रोस्कोपिक जनजातियों को देखते हैं।एक छोटी प्रजाति जिसके केवल समूह के बारे में हम  जानते हैं ।जिसका नाम ,व्यवहार ,फायदा ,नुक्सान,वंसज,विशेषताएं हम जानते हैं या जानने की कोशिश में लगे रहते हैं।हम उसकी एकता जानते हैं उसका आचरण जानते हैं लेकिन न तो हम उसकी feelings जानते हैं ,न उनकी बोली जानते हैं समझने की कोशिश कर सकते हैं लेकिन जान नहीं सके और न हि हम उनकी सोच जान सकते हैं और समझ सकते हैं।शायद ब्रह्माण्ड में हम चीटियों से भी छोटे हों या फिर इतने छोटे कि शायद उसको हमारे बारे में इस मानव जाति के बारे में मालूम ही न हो।वो शायद हमारी हि तरह जनजातियां और प्रजातियां खोजने में लगा हो याफिर उसके लेवल पर इस तरह की कोई चीज़ ही नही होती हो जिससे उसे इस तरफ सोचने का मौका मिले।उसकी सोच ही different हो जहाँ जीना-मरना,जीवन-जनजाति,सोच-दिमाग,व्यव्हार-नेचर ये सब किसी भी माईने में न हों।क्या पता उनका काम इस सब के परे किन्हीं और मूलभूत आवश्यकताओं पर टिका हो जिसका हमारी दुनिया की किसी भी चीज़ से कोई लेना देना न हो।वो इस सब से बहुत बड़ा हो जिसको हमारी सोच भी न सोच सकती हो।
जैसे बहती हुई नदी को ये नहीं मालूम होता कि उसके साथ कंकड़ भी बह रहे हैं।दो कंकड़ आपस में बहस कर रहे होते है -एक बोलता है कि मैं इस नदी को रोक के दिखाऊंगा तो दूसरा कहता है देखता हूँ मैं तू कैसे रोकता है नदी को और दूसरी तरफ बहती नदी है जिसे ये भी नहीं पता कि उसमे दो कंकड़ हैं जो उसको लेकर लड़ रहे हैं उनकी बातें or conversation पता होना तो बहुत दूर की बात है ,उसका काम है बहना और वो बहती जा रही है, ऐसी ही हमारी स्थिति है ब्रम्हांड में ।
जो चीज़ हमें regular और रूटीन में दिखतीं हैं हमें वो सारी दुनिया की चीजें systematic और symmetric दिखती हैं लेकिन हमें पता ही नहीं होता कि चीजें इतनी छोटी या इतनी बड़ी भी हो सकती हैं। जिसके systematic होने का हम अनुमान भी नहीं लगा सकते थे, उनके माईने उसके आकर ,उसकी position,shape की बदौलत हमारी उम्मीद से बिलकुल हट कर हो जाती है।जब तक पृथ्वी को बाहर से नहीं देखा गया तब तक कोई मानने को भी तय्यियार नहीं था कि पृथ्वी गोल और गेंदाकार है। सब उसको चपटा ही समझते थे। बिलकुल ऐसा ही आज है जब तक फुल प्रूफ न दो तो कोई बात मानने को तय्यियार ही नही होता है । सारी चीज़ें बहुत छोटे और बहुत बड़े लेवल पर हमें सिमेट्रिक और सिस्टेमेटिक दिखती हैं  शायद वो इतनी उबड़-खाबड़ हों लेकिन उनकी speed उनकी बनावट हमारी आँखों को धोखा सा देती हैं।जैसे-running fan ,spinning earth seemed to be circular or spherical because of their speed and microscopic corner of table and telescopic surface of the sun by shape seems same.I think it's a natural gift given to us given by nature.how we can see,think,imagine speed ,shapes,colors,feelings.?
i don't know universe is a start like a rising sun or end like sunset.