Sunday, 10 May 2015

मेरे शब्द

if we are existing and suppose to be exiting :that's only possible due to presence of photon in the nature and our lives.
PHOTON makes the whole lives of the existing world: as we see ,as we feel,do,make fun and enjoyment and respond : each and every creativity of our lives are just because of photon.photo ही हमारी जिंदगी में सवेरा लेकर आया है सदियों से सदियों तक एक मात्र रौशनी की किरण फोटोन ही रहा है । इसी ने हमें अंधकार और उजाले में फ़र्क़ समझाया है । सदियों से यही एक मात्र कड़ी रही है जो हमारी ऊर्जा और हमारे भार  को संतुलित करे हुए है । इलेक्ट्रान हो या प्रोटोन ,एटम हो या फिर न्यूट्रॉन ,mass ,higgsboson  और एनर्जी सब इसी की उपज हैं तभी इन् सब को हम एक दुसरे मे  बदल सकते हैं । फोटोन जीवन की किरण है जो life को create करती है। 
इस संसार में सुगंध (गंध or  smell ) क्यों पायी जाती है इसकी existence  कैसे और किस कारण की वजह से है?
सुख और दुःख पर ही यह संसार क्यों टिका हुआ है ?आराम और कष्ट  तो इस शरीर के रूप हैं न की आत्मा के ,ये तो एक  feeling और अनुभव है जो हर इंसान और  जनजाति अपने जीवन में व्यतीत करती और संजोती है। इनका शरीर के अलावा आत्मा से क्या relation है मोक्ष से क्या relation है,परमात्मा और स्वर्ग  एवं नर्क से क्या relation है ।
सुख और दुःख ,स्वाद और संवाद के परे क्या होता है क्या हमें इससे जानने की जरूरत है हम क्या करेंगे इसे जानकर । हमें क्या मिल सकता है इसे जानकर ,……।`
obviously आप यही कहेंगे सुख-दुःख ,स्वाद-संवाद ,लेकिन यही मेरा प्रश्न है ।आखिर दुनिया किस चीज़ की तलाश में'है जो शायद उसे पता ही नहीं है या फिर वो इतनी मामूली है कि पता करके भी क्या होगा ,कोई फायदा नहीं है । आज की दुनिया की यही टेंडेंसी है फायदे के ऊपर उसे कुछ नहीं दिखता है long term  सोच की कमी है ।
अच्छा तो इसे ऐसे सोचो -        मरने के परिणाम में आपको क्या मिलेगा? ....  ………
यहाँ तो मिलेगा शब्द ही व्यर्थ है अनुभव करना शब्द भी गलत है ,लेकिन क्या ?????
ये तो मैं भी नहीं जानता और शायद कोई भी नहीं । मिलेगा शब्द का मतलब और वजूद दोनों ही इस मायावी दुनिया के साथ जुड़े हैं अगर कुछ है तो सिर्फ इसके अंदर है बाहर  कुछ भी नहीं है और जो बाहर है वो सबके बस के बाहर है अगर अपने मुद्दे पर वापस आकर फिर से सोचें तो आपको खुद महसूस होगा जैसे मरने के  बाद अगर आपके पास कुछ हुआ भी तो आप उसका करोगे क्या ,उसके होने या न होने का भी क्या मतलब रह जायेगा :उसके लिए क्या वजह होगी आपके पास ,न तो उस समय आपके पास आपका शरीर होगा न कोई फीलिंग :
आप उसे रखोगे कहाँ ,उसका आप करोगे क्या ,किससे बांटोगे किससे शेयर करोगे ,हमेशा बाँटने से शेयर करने से आप.....  क्यों किसी भी चीज़ का मतलब ,अर्थ किसी दुसरे से जरूर होता है फिर चाहे वो ज्ञान हो ,पैसा हो ,दुश्मन हो या फिर प्यार । अगर कोई और नहीं हमसे  सुख -दुःख बाँटने वाला ,समझौता करने वाला तो किसी भी बात का कोई महत्त्व और मतलब नहीं है वो सब सीमित और लिमिटेड है हमारे खुद के लिए और सबके लिए । लोग अगर ये भी कहें की शाबाशी मिलेगी ,शान और शौकत होगी पूर्वजों के सामने । ये सब कहने  में ही अच्छा लगता है मेरी मानें इससे कुछ भी नहीं होगा जो आप धरती पर रहकर पा सकते हो महसूस कर सकते हो अनुभव ले सकते हो शेयर कर सकते हो अर्थात बाँट सकते हो वो सब और कहीं नहीं कर सकते क्यूंकि आपकी आत्मा और दुनिया केवल आपके शरीर को पहचानती है आपको नहीं ।
मृत्युपर्यन्त शब्द और अर्थ सब व्यर्थ हैं कौन मिलेगा क्या मिलेगा किससे मिलेगा किसको मिलेगा क्यों मिलेगा और अगर मिलेगा  भी तो क्या होगा उसका क्या होगा उससे किसको क्या फ़र्क़ पड़ेगा आपको फ़र्क़ पड़ेगा कुछ या फिर किसी और को भी कुछ फ़र्क़ पड़ेगा ।
मेरा मानना  है मिलेगा !इस स्टेज और सिचुएशन (after death )में  है ये शब्द ही अर्थ हीन और बेमानी सा है ।

मैं कहता हूँ कष्ट  ही मिले सही लेकिन इस दुनिया में आपको कुछ तो मिलता  है इस दुनिया में आपकी उपस्थिति ही आपको एक बहुत बड़ा वरदान है इसे व्यर्थ मत जाने दो ।
व्यर्थ में जिंदगी और ज़िंदगियों को मत बर्बाद करो । इस हसीन  दुनिया को खूबसूरत बनाने की जितनी भी मुमकिन  कोशिश  कर सकते हो करो । सबसे पहले अपने अंदर की खूबसूरती को ढूंढो ,उसे पहचानो और उस खूबसूरती को अपने  से बाहर निकालो । सब कुछ अपने आप खूब सूरत हो जायेगा ।  दुनिया को देखो समझो महसूस करो ,फिर चाहे वो एक अच्छा या फिर बुरा सपना ही क्यों न हो । लेकिन ये तुम्हारी जिंदगी है तुम्हारा वरदान है ,यहाँ हार मत मानों क्यूंकि ज़िंदगी ही सब कुछ है अगर ज़िंदगी नहीं तो कुछ भी नहीं ।


समाज भगवान को पहचानने की और जानने की कोशिश  करता है जिसमे वो अपना तन,मन,धन,समय और जीवन साथ ही साथ जिंदगी के बहुत से पक्ष /पल दांव  पर लगा देता है उसे लालसा होती है चाहे वो किसी भी चीज़ की हो लालच (रावण )हो या फिर मोक्ष (विभीषण),दोनों ही  इक्षाएं किसी उद्देश्य के फलस्वरूप पैदा होती हैं अब कौन सा उचित है और कौन सा अनुचित ये तो काल समय चक्र और कुछ पैमाने ही बता सकते हैं ।
 विधाता के पास जाना ही लालसा का परिणाम है फिर चाहे वो कष्ट का प्रतिशोध हो या सुख की शुक्रवानी अर्थात शुक्रिया हो ,या फिर कुछ पाने की ,जीने और मरने की लालसा हो ।
इससे  तो अच्छा है कि खुद को पहचानो ,खुद के अंदर झांक के देखो क्यूंकि भगवान तो हम ही बनाते हैं और वो हमसे ही बनता है (जैसे इंसान से बच्चे का जन्म होता  है )वो  कहीं नहीं होता है । न ही वो हमारे अंदर होता है लेकिन जैसे जैसे हम अपने अंदर झांकते जाते हैं खुद में लीन होते जाते हैं खुद को समझते ,सुधारते  और संवारते जाते हैं वैसे वैसे हम उसके रूप में और वो हमारे रूप में, हमारे शरीर में, हमारी आत्मा में साकार होने लगते हैं । तब कहीं जाकर भगवन का मुझमे और मेरा मुझमे और उनमें जन्म होता है ,प्रवेश होता है । एक उत्पत्ति साकार होती है । खुद के लिए भी और उस समाज के लिए भी जिसने नाम दिया है चाहे वो मेरा हो या भगवान । खुद को समझो>>>>जानों >>>और  महसूस करो फिर अपनी नज़र दूसरों तक या कहीं और लेजाओ ।अपनी समझ का दायरा  जब आप चरम सीमा तक पहुंचा दोगे तब फिर  ....
इसी में मैं समझता हूँ मोक्ष है यही मार्ग है ।
लोग समझते हैं जिंदगी किसी न किसी की देन है जो माता -पिता खानदान और समाज से परे है उसका शुक्रिया करने की जरूरत है इसलिए लोग उसे भगवन मानकर उसे अपना ideal  बना लेते हैं । मंदिरों,पत्थरों, मूर्तियों,लेखों,पत्रों,चिन्हों,मस्जिदों ,तस्वीरों और न जाने कितने  तरह के रूपों में ढूंढना शुरू कर देते हैं । लेकिन मैं  कहता हूँ रुको !
बात तो मेरे अस्तित्व की चल रही है ये तो मुझसे ही शुरू होगा और मुझ पे ही खत्म ,तो मुझ से ही शुरू करो न ।
यहाँ वहां कहाँ खोज रहे हो और वैसे तो मिलना नहीं। …मिलना …।
और अगर मिला भी तो क्या करना है, क्या करोगे, कभी सोचा है! अगर मुझमे मिल गया तो कुछ सोचना भी जायज है क्यों कि  मेरा वजूद है ,मैं कम से कम  खुद को तो और खुद के बारे में तो जानता ही हूँ। चाहे जो भी चीज़ हो ,बात हो, अनुभव हो,feeling हो ,वाणी हो, सुगंध हो  मुझमे ही तो होगी --मुझसे ही तो होगी।
मैं जानूंगा लेकिन इसके लिए  मेरी आत्मा ही नहीं मेरा शरीर भी  साथ होना जरूरी है ये दुनिया और ये वातावरण भी जरूरी है वार्ना सब बिन मतलब सा है.।
आपको यह जानकर आश्चर्य होगा की मेरा हर एक कदम मुझसे कुछ मशवरा करता  /सलाह लेता सा प्रतीत होता है। मुझसे कुछ पूछता हुआ और प्रश्न करता हुआ सा प्रतीत होता है अंततः निर्णय आपका होता है।
वो जैसा भी हो उसका परिणाम जैसा भी हो ,जो ये परिस्थिति और अनुभव आप महसूस करते हो यही आपकी पहली सीढ़ी है जो आपको आपके खुदके ,आपकी आत्मा के दर्शन कराते हैं। ये आपके साथ हर पल हर क्षण रहता है इसी का संतुलन ही तो है सब कुछ!
हर इमारत की नीव ,हर रस्ते की सीढ़ी ,हर ताले की चाभी और शुरुआत या फिर अंतिम छोर आपकी बात का ,आपके निर्णय का, परिणाम का ,जिंदगी की /का।
मेरा मनना है दुनिया का बंधन भी यही है शुरुआत भी यही है और अंत भी यहीं है।

मेरे शब्द। …………………………………………। ओशो  

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